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आगम-सम्पादन की यात्रा नथमलजी (सांप्रतम् युवाचार्य महाप्रज्ञ) एवं आगम साहित्य के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्री श्रीचंदजी रामपुरिया एवं उस दल के अनेक साधु-साध्वियों को कितना श्रम करना पड़ा होगा, उसे भुक्तभोगी ही जान सकता है। उक्त साधकों के अथक परिश्रम से जैन विद्या को इन ग्रंथों के रूप में जो नवीन उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं, उनके लिए साहित्य-जगत् उनका आभारी रहेगा।
• डॉ. नेमीचंद्र जैन, संपादक-तीर्थंकर (मासिक) ने लिखा-अंगसुत्ताणि जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य को देखकर मैं स्तब्ध रह गया। आपने तथा पूज्य मुनिवर्ग ने न केवल जैन समाज को अपितु सम्पूर्ण प्राच्य विद्या-जगत् को उपकृत किया है। यह ऐतिहासिक कार्य है। आप सबने जो यह कार्य इतनी उत्कृष्टता, कलात्मकता आकिंचन्यपूर्वक सम्पन्न किया है, इस साधना के सम्मुख मैं नतशिर हूं।
• जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी संघ के प्रमुख कविवर उपाध्याय अमर मुनि ने आगम-ग्रंथों को देखकर कहा-वाचना प्रमुख आचार्यश्री तुलसीजी और सम्पादक-विवेचक महान् मनीषी मुनिश्री नथमलजी की ज्ञानक्षेत्र में यह भव्य देन शत-प्रतिशत अभिनन्दनीय है। यत्र-तत्र उनकी प्रतिभा, बहुश्रुतता, निष्पक्ष सत्यदृष्टि एवं मूलग्राही सूक्ष्म चिन्तनशैली सहृदय जिज्ञासु पाठक को प्रशंसा मुखर कर देती है।
• 'श्रमण' (मासिक) ने आगम ग्रंथों की समीक्षा करते हये दिसम्बर ७५ में लिखा-'शास्त्रीयस्तर पर भाषा-वैज्ञानिक संशोधन का कार्य विस्तृत अरण्य को सुव्यवस्थित उद्यान का आकार देने जैसा कठिन है, किन्तु आचार्यश्री तुलसी तथा उनके शिष्य मुनि नथमलजी इस कार्य में वर्षों से निरकांक्ष भाव से लगे हुए हैं। (अंगसुत्ताणि) का यह संस्करण वास्तव में निर्वाण-महोत्सव वर्ष की अनमोल एवं भक्तिपूर्ण उपलब्धि है।
सम्पूर्ण आगम-साहित्य का इसी प्रकार समर्थ संपादन, संशोधन युग के लिए अपेक्षित है।
१९. आगमों के व्याख्यात्मक ग्रन्थ भारतीय संस्कृति जैनागम साहित्य की सतत-प्रवाही पयस्विनी में स्नात है। भारत की इस वसुन्धरा पर अनेक फूल खिले। अपने-अपने सौरभ से सभी