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आगम-सम्पादन की यात्रा नथमलजी ने इस पर टिप्पण लिखते हुए कहा है
___ इस श्लोक में निश्रेणि, फलक, पीठ, मंच, कील और प्रासाद-इन छह शब्दों के अन्वय में चूर्णिकार व टीकाकार एक मत नहीं है। चूर्णिकार निश्रेणि, फलक और पीठ को आरोहण के साधन तथा मंच, कील और प्रासाद को आरोह्य स्थान मानते हैं-(णिस्सेणी...आणेज्जा-जि.चूर्णि, पृ.१८३)। टीकाकार पहले पांचों शब्दों को आरोहण के साधन और प्रासाद को आरोह्य स्थान मानते हैं-(निश्रेणिं फलकं पीठम् 'उस्सवित्ता' उत्सृत्य ऊर्ध्वं कृत्वा इत्यर्थः, आरोहेत् मञ्चं कीलकं च उत्सृत्य कमोरोहेदित्याह-प्रासादम्-हा.टी.प. १७६)।
आयारचूला के अनुसार चूर्णिकार का मत ठीक जान पड़ता हैं। वहां (१८७वें) सूत्र में अन्तरिक्ष-स्थान पर रखा हुआ आहार लाया जाए उसे मालापहृत कहा गया है। वहां अंतरिक्ष-स्थानों के जो नाम गिनाए हैं उनमें'थंभंसिवा, मंचंसिवा, पासायंसि वा' ये तीन शब्द यहां उल्लेखनीय हैं। इन्हें आरोह्य स्थान माना गया है। (१८७वें) सूत्र में आरोहण के साधन बतलाए हैं, उनमें 'पीढं वा, फलगं वा, निस्सेणिं वा'-इनका उल्लेख किया गया है।
इन दोनों सूत्रों के आधार पर कहा जा सकता है कि इन छह शब्दों में पहले तीन शब्द जिन पर चढ़ा जाए, उनका निर्देश करते हैं और अगले तीन शब्द चढ़ने के साधनों को बतलाते हैं। टीकाकार ने 'मंच' और 'कील' को पहले तीन शब्दों के साथ जोड़ा उसका कारण इनके आगे का 'च' शब्द जान पड़ता है।
इसी प्रकार 'नियाग' शब्द भी बहुत विवादास्पद है। इसका उल्लेख तीसरे अध्ययन के दूसरे श्लोक में और छटे अध्ययन के (४८वें) श्लोक में हुआ है। वर्तमान में 'नियाग' शब्द का अर्थ इस प्रकार किया है-आदरपूर्वक निमंत्रण दे, उसके घर से प्रतिदिन भिक्षा लेना 'नियाग' 'नियतता' या निबंध नाम का अनाचार है। अवचूरीकार ने टीकाकार का ही अनुसरण किया है। स्तबकों (टब्बों) में भी यही अर्थ रहा है। अर्थ की यह परम्परा छूटकर ‘एक घर का आहार सदा नहीं लेना' यह परम्परा कब चली, इसका मूल साहित्य में नहीं, किन्तु परम्परा में ही ढूंढ़ा जा सकता है।
इस टिप्पण को मुनिश्री आगे ले गये हैं और निशीथ, आचारांग आदि के उद्धरणों से विषय को काफी स्पष्ट किया है। टिप्पण को और आगे बढ़ाते