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आगम सम्पादन की यात्रा
आवश्यक हो जाती हैं । मुनिश्री नथमलजी ने विस्तृत टिप्पणियों से शब्दों की दुरूहता को दूर करने का प्रयास किया है । आप भी उनकी उपयोगिता को सहजरूप से समझ सके; इसलिए एक दो शब्दों की टिप्पणियों का, जो मुनिश्री ने लिखी हैं, उल्लेख कर देना अत्यावश्यक मानता हूं ।
दंतपहोयणा और दंतवण का टिप्पण
'दंतपहोयणा' और दंतवण' - ये दो अनाचार हैं । चूर्णिकार 'अगस्त्यसिंह मुनि' और 'जिनदास महत्तर' ने 'दंतपहोयणा' शब्द का अर्थ - दांतों को काष्ठ-लकड़ी, पानी आदि से पखालना किया है- (दंतपहोयणं णाम दंताण कट्ठोदगादीहिं पक्खालणं - जि . चू. पृ. ११३) ।
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अगस्त्यसिंह मुनि ने 'दंतवण' का अर्थ- दांतों की विभूषा करना किया है - दंतमणं दणाणं (विभूसा) - अ. चू. पृ. ६२ । किन्तु जिनदास महत्तर ने इसे 'लोकप्रसिद्ध' कहकर छोड़ दिया है ।
टीकाकार हरिभद्रसूरि ने 'दंतपहोयणा' का अर्थ - दांतों का अंगुली आदि से प्रक्षालन किया है - ( दन्तप्रधावनं चांगुल्यादिना क्षालनम् ) और दंतवण का दन्तकाष्ठ- दन्तशोधन किया है। इस प्रकार चूर्णिकार और टीकाकार के अभिमत से 'दंतपहोयणा' का अर्थ स्पष्ट है । किन्तु 'दंतवण' का अर्थ स्पष्ट नहीं है।
अनाचारों की प्रायश्चित्त विधि 'निशीथ सूत्र' में मिलती है। वहां दांतों से संबंध रखने वाले तीन सूत्र हैं
१. जे भिक्खू अप्पणो दंते आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा ।
२. जे भिक्खू अप्पणो दंते उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा ।
३. जे भिक्खू अप्पणो दंते फूमेज्ज वा रएज्ज वा । '
भाष्यकार ने इसका अर्थ 'दांतों को अंगुली आदि से धोना बार-बार धोना, दांतों को दन्तकाष्ठ से घिसना, बार-बार घिसना और दांतों को रंगना' किया है।
निशीथ के तीन सूत्रों का अभिप्राय दशवैकालिक के 'दंतपहोयणा' और 'दंतवण' – इन दो शब्दों में बंधा हुआ है। दंतप्रक्षालन दंतपहोयणा से संबंधित है । 'दन्तशोधन' दंतौन आदि से दांतों को घिसना, बार-बार घिसना और दांतों को रंगना तथा दंतविभूषा की अन्य कोई क्रिया करना - ये सब दंतवण में गर्भित १. नि. १५ । १३१-३३ ।