Book Title: Agam Sampadan Ki Yatra
Author(s): Dulahrajmuni, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 74
________________ आगम-सम्पादन कार्य : विद्वानों की दृष्टि में हमारे इस कार्य के प्रकाश-स्तंभ हैं आचार्य तुलसी और उससे विकीर्ण आलोक रश्मियों को संजोकर गति करने वाले हैं-युवाचार्य महाप्रज्ञ । दोनों के योग ने मार्ग को आलोकित किया है और यही एकमात्र कारण है कि अनेक साधु-साध्वियां निर्भय और निःशंक होकर आगम-पथ पर आगे बढ़ रहे हैं। आगम-संपादन के मूल्यांकन की इस पवित्र वेला में हम श्रावक श्रीचंदजी रामपुरिया के योगदान को नहीं भुला सकते। कार्य के प्रारंभ से लेकर आज तक वे पूर्णनिष्ठा और समर्पणभाव से इसके साथ जुड़े रहे हैं और सदा नये-नये उन्मेष प्रस्तुत करते रहते हैं। जैन विश्व भारती का सुरम्य और विजन स्थल, मुद्रणालय की सुविधा तथा समृद्ध ग्रंथागार से प्राप्य सामग्री की सुलभता-इस त्रिवेणी के कारण आगम-कार्य को गति देने में अधिक आयास नहीं करना पड़ता। अपेक्षा मात्र इतनी-सी है कि कार्य का सम्यक् नियोजन और संयोजन हो। इतना होने पर निष्पत्ति अपने आप प्रत्यक्ष होगी। आगम-ग्रंथों पर प्राप्त विद्वानों की सम्मतियां . डॉ. हीरालाल जैन ने दशवैकालिक सूत्र का पारायण कर लिखा-'दशवैकालिक का प्रस्तुत संस्करण अपने ढंग का अपूर्व है। मैं नहीं समझता कि अभी तक इतने परिश्रमपूर्वक एक-एक शब्द के अर्थ पर गंभीरता और व्यापकता से ध्यान देकर उसकी समस्त साहित्यिक परम्पराओं को निष्पक्षभाव से अंकित करते हये किसी भी अन्य आगम-ग्रंथ का सम्पादन किया गया हो। • डॉ. राजाराम जैन, रीडर एवं अध्यक्ष संस्कृत एवं प्राकृत विभाग, मगध विश्वविद्यालय ने २८वें अखिल भारतीय ओरियंटल कॉन्फ्रेन्स में, अध्यक्षीय भाषण करते हुए कहा-वैसे विभिन्न संस्थानों से आगम-साहित्य के अनेक, विविध संस्करण निकल चुके हैं, किन्तु आचार्य तुलसीगणी के निर्देशन में संपन्न यह कार्य सर्वांगीण एवं सर्वोपयोगी शोध कार्य सिद्ध होगा, ऐसा विश्वास है। विषय एवं भाषा से पूर्व ऐतिहासिक क्रम को ध्यान में रखते हुये, अस्पष्ट या संदिग्ध पाठों का चूर्णियों एवं वृत्तियों के आलोक में निर्धारित कर उनका पाठ-संशोधन सावधानी से प्रस्तुत किया गया है। इसमें आगममूर्ति मुनि

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