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आगम-सम्पादन की यात्रा
ये दोनों तथ्य परस्पर में विरोधी हैं।
२. ज्ञाता' धर्मकथा में उल्लेख है कि तीर्थंकर मल्लिनाथ को पौष शुक्ला एकादशी को कैवल्य प्राप्त हुआ था, परन्तु आवश्यक नियुक्ति में मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को कैवल्य-प्राप्ति माना गया है। यह विरुद्ध वचन
इसी प्रकार अन्यान्य भी बहुत से उदाहरण हैं। निबन्ध का कलेवर बढ़ जाने के भय से उनका विस्तार नहीं दिया गया। संक्षेप में अवगाहन, आयुष्य, सचित्त भोजन आदि के विषय में अनेक विसंवाद नियुक्तियों से संकलित किए जा सकते हैं। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर नियुक्तियों का आनुमानिक कालमान निर्धारित किया जा सकता है। परन्तु कौनसी नियुक्ति किनकी है यह जब तक निश्चय नहीं हो जाता या अमुक नियुक्ति आगम-संगत है या नहीं, यह निर्धारण नहीं हो जाता तब तक इनका कालमान निर्धारित करना कठिन है।
प्रो. हीरालाल जैन ने द्वितीय भद्रबाहु को ही नियुक्तिकार माना है। श्वेताम्बर मुनिश्री चतुरविजयजी 'श्री भद्रबाहु स्वामी' शीर्षक लेख में अनेक प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध करते हैं कि नियुक्तिकार श्री भद्रबाहु विक्रम की छठी शताब्दी में हो गए हैं। वे जाति से ब्राह्मण थे। प्रसिद्ध ज्योतिषी वराहमिहिर इनका भाई था.......नियुक्तियां आदि सर्व कृतियां इनके बुद्धिवैभव से उत्पन्न हुई हैं........ वराहमिहिर का समय ईसा की छठी शताब्दी? (५०५ से ५८ ए.डी.) है। इससे भद्रबाहु का समय भी छठी शताब्दी ही सिद्ध होता है।
भाष्य
नियुक्तियों के बाद भाष्य बने । ये प्राकृत भाषा के पद्यों में लिखे गए। यह बताया जा चुका है कि नियुक्तियां संक्षेप में लिखी गई थीं। उनको समझाने के लिए तथा आगमार्थ को स्पष्ट करने के लिए भाष्यों का उद्भव हुआ। निम्नोक्त ग्यारह ग्रन्थों पर भाष्य मिलते हैं
१. ज्ञाता ८१२२५। २. 'मग्गसिर सुद्धिक्कारसीए मल्लिस्स....(आ.नि.गा. २५०) ३. अनेकान्त वर्ष ३, किरण १२। ४. डॉ. हीरालाल कापड़िया रचित
The Canonical Literature of the Jains, p. 187.