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आगमों के व्याख्यात्मक ग्रन्थ
१. आवश्यक सूत्र, २. दशवैकालिक सूत्र, ३. उत्तराध्ययन, ४. व्यवहार, ५. निशीथ, ६. बृहत्कल्प, ७. जीतकल्प, ८. पंचमंगल श्रुतस्कन्ध, ९. ओघनियुक्ति, १०. पंचकल्प, ११. पिण्ड-नियुक्ति।
इनमें से कई भाष्यों का कालमान और भाष्यकार का नाम अभी भी अज्ञात है। भाष्य के प्रारम्भ में या अन्त में कहीं भी नामोल्लेख नहीं हुआ है।
__ आवश्यक सूत्र पर जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण का विशेषावश्यक है। वे सातवीं सदी में हुए थे। पंचकल्प पर संघदास तथा धर्मसेनगणी का भाष्य है। वे छठी शताब्दी में हुए थे। बृहत्कल्प के भाष्यकार संघदासगणी हैं।
चूर्णि
इनकी भाषा प्राकृत या संस्कृतमिश्रित प्राकृत है। ये गद्यात्मक हैं। इनके बीच-बीच में विषय को स्पष्ट करने के लिए नियुक्ति और भाष्य की गाथाएं भी प्रयुक्त की गई हैं। साथ-साथ अन्यान्य ग्रन्थों के श्लोक भी प्रयुक्त हैं। ये भाष्य के बाद लिखी गई थीं यह अनुमान इस आधार पर किया जा सकता है कि भाष्य तो केवल प्राकृत भाषा में ही हैं और चूर्णियां संस्कृतमिश्रित प्राकृत भाषा में। ज्यों-ज्यों प्राकृत भाषा का प्रभुत्व घटा त्योंत्यों संस्कृत भाषा का प्रभुत्व बढ़ने लगा। उसका असर साहित्य पर आया, गाथा-संस्कृत में साहित्य का निर्माण हुआ। कुछ भी हो, साधारणतः चूर्णियों का रचनाकाल नियुक्ति और भाष्य के बाद का है इसमें कोई विवाद नहीं रह जाता।
मुनिश्री नथमलजी ने अपनी पुस्तक 'जैन-दर्शन : मनन और मीमांसा' में जिन सत्तरह चूर्णियों के नाम गिनाये हैं और उनके कर्ता तथा कालमान की चर्चा की है, वे यों हैं
निम्न आगम-ग्रंथों पर चूर्णियां मिलती हैं
१. आवश्यक, २. दशवैकालिक, ३. नन्दी, ४. अनुयोगद्वार, ५. आचारांग, ६. उत्तराध्ययन, ७. सूत्रकृतांग, ८. निशीथ, ९. व्यवहार, १०. बृहत्कल्प, ११. दशाश्रुतस्कन्ध, १२. जीवाभिगम, १३. भगवती, १४. महानिशीथ, १५. जीतकल्प, १६. पंचकल्प, १७. ओघ-नियुक्ति। १. जैन दर्शन : मनन और मीमांसा, पृ. ९०,९१ ।