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आगम-सम्पादन की यात्रा
म्परा
___२२. दशवैकालिक : इतिहास और परम्परा दशवकालिक सूत्र की उत्पत्ति
सुधर्मा स्वामी भगवान् महावीर के पांचवें गणधर थे। उनके बाद जंबू स्वामी हुए। उनके निर्वाण के बाद आचार्य प्रभव संघ के अधिपति बने । एक बार उनके मन में यह चिन्ता हुई–मेरे पीछे आचार्य कौन होगा? उन्होंने अपने साधु-संघ को देखा। इस गुरुतर भार को वहन करने वाला वहां कोई नजर नहीं आया। चिन्तन चालू रहा। आखिर उन्होंने देखा कि राजगृह में शय्यंभव ब्राह्मण उनका उत्तराधिकारी बनने योग्य है। उन्होंने अपने दो शिष्यों को बुलाकर कहा-तुम राजगृह जाओ और शय्यंभव के यज्ञवाट से भिक्षा लाओ। यदि वह भिक्षा न दे तो यह कहकर लौट आना-'खेद है, तत्त्व नहीं जाना जा रहा है।'
दोनों शिष्य वहां गये। भिक्षा न देने पर उन्होंने कहा-'यह दुःख की बात है कि तत्त्व नहीं जाना जा रहा है।'
यज्ञवाट के दरवाजे पर बैठे शय्यंभव ने यह सुना। उसने सोचा-ये साधु उपशांत हैं, तपस्वी हैं। ये झूठ नहीं बोलते। क्या मैं अभी तक तत्त्व नहीं जान पाया? उसे शंका हुई। वह अपने अध्यापक के पास गया और उसने कहा-'तत्त्व क्या है?'
अध्यापक ने कहा-'वेद ही तत्त्व है।' शय्यंभव को यह नहीं जंचा। उसने अपनी तलवार बाहर निकालते हुए कहा-'यदि आप मुझे सही-सही तत्त्व नहीं बतायेंगे, तो मैं आपका सिर काट लूंगा।' ___अध्यापक को कुछ डर लगा। उसने कहा-'अर्हत् प्ररूपित धर्म ही सच्चा तत्त्व है।' शय्यंभव को संतोष हुआ। वह अध्यापक के पैरों में गिर पड़ा। यज्ञवाट की समूची जमीन उन्हें देकर, वह उन दोनों साधुओं की खोज में निकल पड़ा। वे अपने आचार्य प्रभव के पास पहुंच गये थे। वह भी वहां आया। आचार्य को वंदना कर पूछा-'मुझे धर्म का रहस्य बताइये।' ___ आचार्य प्रभव ने उसे पहिचाना और साधु धर्म का मर्म समझाया। शय्यंभव प्रव्रजित हुए। वे चौदह पूर्वधर बने । जब उन्होंने दीक्षा ली, तब उनकी स्त्री गर्भवती थी। कौटुम्बिक लोग कहते-'यह अपनी तरुण स्त्री को छोड़कर साधु बना है। यह अपुत्र है।' उनकी स्त्री से पूछते–'क्या तू गर्भवती है?' वह