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आगम-सम्पादन की यात्रा . प्रथम आठ के कर्ता जिनदास महत्तर हैं। इनका जीवनकाल विक्रम की सातवीं शताब्दी है। जीतकल्प चूर्णि के कर्ता सिद्धसेनसूरि हैं। बृहत्कल्प चूर्णि प्रलम्बसूरि की है। शेष चूर्णिकारों के विषय में अभी जानकारी नहीं मिल रही है। दशवैकालिक की एक चूर्णि और है। उसके कर्ता हैं अगस्त्यसिंह स्थविर ।
प्रो. हीरालाल कापड़िया ने बीस चूर्णियों के नाम गिनाये हैं। बहत-सी चूर्णियां अभी भी मुद्रित नहीं हो पायी हैं। उनकी मूल ताड़पत्रीय प्रतियां या अन्य आदर्श जैन भंडारों में सुरक्षित हैं। चूर्णियां सूत्रस्पर्शी ही हुई हों, ऐसी बात नहीं है। उनमें अनेक स्थलों पर विसंवाद आया है। आगम से विरोधी बातों का संकलन इसमें हुआ है, यह भली-भांति कहा जा सकता है। फिर भी चूर्णिकार विषयों को स्पष्ट करने में तथा मूलागमों के हृदय को पकड़ने में अधिक सफल हुए हैं। टीकाकारों से ये अधिक विश्वस्त हैं, ऐसा माना जा सकता है।
श्रीमज्जयाचार्य ने इन चूर्णियों से कई आगम-विरोधी स्थल संकलित किए हैं, जैसे
१. सूत्रों में रात्रि-भोजन का स्पष्ट निषेध है, परन्तु बृहत्कल्प के चूर्णिकार ने अपवादस्वरूप रोगादिक में रात्रि-भोजन लेने का विधान किया है।
यही तथ्य मूल निशीथ सूत्र में तथा निशीथ-चूर्णि में विरोधात्मक रूप से संकलित हुआ है।
२. निशीथ सूत्र के पन्द्रहवें उद्देशक में सचित्त आम चूसने वाले मुनि को चौमासी प्रायश्चित्त कहा है। परन्तु चूर्णिकार रोगादि को मिटाने के लिए अथवा ऊनोदरी से व्याकुल हो जाने पर मुनि को सचित्त आम चूसने की आज्ञा देते हैं, यह स्पष्टतः आगम-विरुद्ध है। टीका
आगम के व्याख्यात्मक ग्रन्थों में चौथा स्थान टीका का है। ये संस्कृत भाषा में लिखी गई हैं। संस्कृत-साहित्य में इनका अपूर्व स्थान है। इन टीकाओं में केवल आगमिक तत्त्वों का ही विवेचन नहीं हुआ है, बल्कि अन्यान्य जैन परम्पराओं और जैनेतर परम्पराओं का भी समुचित संकलन हुआ है। इनके अध्ययन से तात्कालिक सामाजिक, राजनीतिक तथा भौगोलिक स्थितियों का १. प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध-विसंवाद अधिकार ।