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आगम-सम्पादन की यात्रा अनुयोगद्वार सूत्र में नियुक्तियों के तीन भेद किये गए हैं
१. निक्षेप-नियुक्ति, २. उपोद्घात-नियुक्ति ३. सूत्रस्पर्शिक-नियुक्ति । ये भेद विषय की व्याख्या के आधार पर किये गये हैं।
डॉ. घाटगे ने नियुक्तियों के तीन विभाग किये हैं
१. मूल नियुक्तियां जिनमें काल के व्यवधान से कोई भी मिश्रण न हुआ हो; जैसे आचारांग और सूत्रकृतांग की नियुक्तियां।
२. जिनमें मूल भाष्यों का सम्मिश्रण हो गया है। फिर भी वे व्यवच्छेद्य हैं; जैसे–दशवैकालिक और आवश्यक सूत्र की नियुक्तियां।।
३. वे नियुक्तियां जिनको आज ‘भाष्य' या बृहद् भाष्य कहते हैं, जिनमें मूल और भाष्य में इतना सम्मिश्रण हो चुका है कि हम दोनों को अलग-अलग नहीं कर सकते; जैसे-निशीथ आदि पर नियुक्तियां । उपर्युक्त विभाग नियुक्ति के प्राप्त रूप के आधार पर किया गया है। इनके काल-निर्णय में सभी विद्वान् एकमत नहीं हैं। पर इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि वीर-निर्वाण की आठवीं-नवीं सदी के पूर्व इनका निर्माण हुआ था।
डॉ. ए. बी. देव' इस निर्णय पर पहुंचते हैं कि नियुक्तियां निश्चय से ही छेद सूत्रों के बाद की कृतियां हैं। ___ वर्तमान में विभिन्न आगम ग्रन्थों पर दस नियुक्तियां उपलब्ध हैं।
कई विद्वानों का मत है कि सभी नियुक्तियां प्रथम भद्रबाह-जिनका समय वीर-निर्वाण की दूसरी शताब्दी है की कृतियां हैं। परन्तु यह तथ्य कसौटी पर खरा नहीं उतरता। इसका कारण यह है कि नई नियुक्तियों में ऐसे व्यक्तियों का उल्लेख है जो निश्चय ही भद्रबाहु के बाद के हैं। उदाहरणस्वरूप उत्तराध्ययन नियुक्ति में स्थूलिभद्र का और आवश्यक नियुक्ति में वज्रस्वामी
और आर्यरक्षित का उल्लेख हुआ है। यदि हम सभी नियुक्तियों का कालमान प्रथम भद्रबाहु (वीर-निर्वाण की दूसरी शताब्दी) पर निर्धारित करते हैं तो उक्त तथ्य का खण्डन स्वयं अपने तर्कों से हो जाता है।
ओघनियुक्ति और पिण्डनियुक्ति की समीक्षा से कुछ तथ्य सामने आ सकते हैं।
मुनि पुण्यविजयजी इस निर्णय पर पहुंचते हैं कि छेद सूत्रकार आचार्य १. Indian Historical Quarterly, vol. 12, p. 270. २. History of Jain Monachism, p. 32.