________________
४७
सामूहिक वाचना का आह्वान से यह कार्य शीघ्रता से सम्पन्न होगा, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं। मुनियों की निःस्वार्थ सेवा से प्रवचन प्रभावना के साथ-साथ ज्ञानवृद्धि का स्रोत भी खुलेगा, ऐसा दृढ़ विश्वास है।
१६. सामूहिक वाचना का आह्वान विचारों का इतिहास जितना पुराना है उतना ही पुराना विचार-भेद का इतिहास है। सभी के विचार एक-से मिलते हों यह कभी नहीं होता। इसलिए आचार्यप्रवर को कहना पड़ा-'प्रत्येक व्यक्ति अपने आपमें एक सम्प्रदाय है। जितने व्यक्ति हैं, उतने ही सम्प्रदाय हैं।'
___ आचार्य तुलसी ने आगमों की सामूहिक वाचना के लिए जैन समाज को आह्वान किया। फलस्वरूप कुछ प्रतिक्रियाएं भी हुईं। परन्तु जितनी अपेक्षा थी उसका एक अंशमात्र सामने आया।
काल के सुदूर व्यवधान से आगम-पाठों की अस्त-व्यस्तता सभी विद्वानों को चिन्तित किए हुए है। परन्तु साम्प्रदायिक अभिनिवेश के कारण किसी में भी यह विश्वास नहीं रहा कि सामूहिक रूप से भी कुछ किया जा सकता है। इस अविश्वास की वृत्ति ने परस्पर के संबंधों के बीच एक खाई खोद डाली है, जिसको पाटना दुष्कर कार्य-सा हो रहा है। सभी अपने आपमें एक-दूसरे के प्रति सन्देह लिए बैठे हैं। ऐसी अवस्था में मिलने-जुलने की बात भी नहीं उठती। जब तक यह सन्देहशीलता नहीं मिटती तब तक वाचना की पृष्ठभूमि तैयार नहीं हो पाती। पृष्ठभूमि के अभाव में कार्य बनता नहीं। अतः आवश्यकता यह है कि इस वृत्ति को मिटाया जाए और एक-दूसरे को तटस्थता से देखने का प्रयत्न किया जाए।
साध्य एक है, पर साधन अनेक । एक साध्य की बात तो जंच जाती है, परन्तु एक साधन की बात नहीं जंच सकती। गन्तव्य एक हो सकता है, परन्तु उस तक पहुंचने के साधन भिन्न-भिन्न अवश्य रहेंगे। कोई किसी मार्ग को और कोई किसी मार्ग को जाना चाहेगा। यह विभिन्न रुचि की बात ही सहनशीलता को सिद्ध करती है। एक ही साधन को सब अपनाकर चलें, यह कभी संभव नहीं हो सकता।
सभी सम्प्रदायों का साध्य एक है-मुक्ति । उनकी प्राप्ति के साधन भिन्न