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आगम-सम्पादन कार्य : विद्वानों की दृष्टि में उनकी रुचि व उत्साह के प्रदीप को प्रज्वलित रखने में सफल हो सकें तो बहत कुछ संभावनाएं हैं। यदि हम अपनी अकर्मण्यता से उनके सामने कोई उपयुक्त सामग्री उपस्थित नहीं कर सकेंगे तो उनका उत्साह टूट जाएगा, इसकी सारी जिम्मेवारी हमारे पर है। आपका यह कार्य उनके लिए बहुत लाभप्रद होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
१८. आगम-संपादन कार्य : विद्वानों की दृष्टि में
यह उस समय की बात है, जब 'जैन विश्व भारती' का जन्म नहीं हुआ था। सन् ५४-५५ में मुम्बई का चतुर्मास सम्पन्न कर आचार्यश्री तुलसी अपने चतुर्विध संघ के साथ महाराष्ट्र की यात्रा कर रहे थे। ‘मंचर' गांव में 'धर्मदूत' पत्रिका पढ़ते-पढ़ते आचार्यश्री के मन में आगम-संपादन की चेतना जागी और तब समूचा धर्मसंघ दृढ़ संकल्प के साथ उसी दिशा में गतिशील हो गया। उस समय तक संपादन का अनुभव नहीं था, परन्तु संकल्प-बल ने आत्म-विश्वास जगाया और आचार्यश्री के मार्गदर्शन तथा आचार्य महाप्रज्ञ (उस समय के मुनि नथमलजी) के निर्देशन में अनेक साधु-साध्वी इस महान् कार्य में जुट गए।
प्रथम दो-तीन वर्षों तक संपादन का यात्रापथ धुंधला बना रहा, पर पैर रुके नहीं। अनुभव के आलोक में धीरे-धीरे कार्य-दिशाएं स्पष्ट होती गईं और एक सुस्थिर गति से कार्य आगे बढ़ने लगा। ____ आगम-साहित्य के अध्येता दोनों प्रकार के लोग हैं-विद्वद्जन और साधारणजन । दोनों को दृष्टिगत रखते हुए हमने पहले आगम-संपादन कार्य को छह भागों में विभक्त किया
१. आगमसुत्त ग्रंथमाला-आगमों के मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि।
२. आगम ग्रंथमाला-आगमों के मूलपाठ, संस्कृतछाया, अनुवाद आदि। ३. आगम-अनुसंधान ग्रंथमाला-आगमों के तुलनात्मक टिप्पण। ४. आगम-अनुशीलन ग्रंथमाला-आगमों के समीक्षात्मक अध्ययन।
५. आगम-कथा ग्रंथमाला-आगमों की कथाओं का संकलन और अनुवाद।