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आगम-कार्य : नए नए उन्मेष आचार्यश्री से निवेदित की। आचार्यश्री ने इस योजना पर प्रसन्नता प्रकट की और उसे स्थायित्व देने पर बल दिया। ‘एषणा' का प्रथम अंक आचार्यश्री के धवल-समारोह के प्रथम चरण पर आचार्यश्री को बीदासर में भेंट किया गया। उसमें आगम-संबंधी अनेक शोधपूर्ण लेख थे। आचार्यश्री ने उसका अवलोकन कर उसे विकसित करने तथा उसी प्रवृत्ति को साध्वी समाज में कार्यान्वित करने की बात कही। ‘एषणा' के अनेक अंक निकले। विविध विषयों पर लिखे गए लेखों का एक सुन्दर संकलन सहज ही हो गया। साध्वियों में आगम तथा उसके व्याख्या-ग्रन्थों की परिशीलन की प्रवृत्ति बढ़ी। वृद्धिंगत अभिरुचि हमारे आगम-कार्य में सहयोगी रही।
दशवैकालिक सूत्र का प्रकाशन श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता ने प्रारंभ किया। कुछेक कारणों से वह कार्य अत्यन्त मंथर गति से चलने लगा। अब दशवैकालिक प्रकाशन-कार्य लगभग पूर्ति पर है।
दशवैकालिक को दो भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम भाग में दशवैकालिक सर्वेक्षण और मूल आदि है। द्वितीय भाग में मूल-पाठ, अनुवाद
और टिप्पणियां हैं। प्रथम भाग के दशवैकालिक का समग्र दृष्टि से अध्ययन होता है और द्वितीय भाग में गाथा-क्रम से। प्रथम भाग में नियुक्ति, चूर्णि और वृत्ति के विशिष्ट स्थल हैं और द्वितीय भाग में विशद टिप्पणियां हैं। दोनों भाग अपने आपमें स्वतंत्र होते हुए भी परस्पर संबद्ध हैं और परस्पर सम्बद्ध होते हुए भी स्वतंत्र हैं।
आचार्यश्री की बलवती प्रेरणा का ही यह परिणाम है कि आज अनेक साधु-साध्वी इस कार्य की दिशा में उत्तरोत्तर प्रगति कर रहे हैं। ऐसा कोई ही दिन बीतता होगा कि जिस दिन आचार्यश्री आगम-कार्य को उत्साह से सम्पन्न करने की प्रेरणा न देते हों। मुनिश्री नथमलजी अहर्निश इस कार्य में मनोयोगपूर्वक लगे हुए हैं और यही कारण है कि यह गुरुतर कार्य आज कुछ सरल और सहज बन गया है।
आचार्यश्री चाहते थे कि और-और भी साधु-साध्वी इस कार्य में जुटते, परन्तु प्रचार-क्षेत्र की विस्तीर्णता तथा अन्यान्य कारणों से वैसा नहीं हआ। कई विद्वान् गृहस्थ भी इसमें संलग्न रहते, परन्तु यह भी नहीं हो पाया। परन्तु कई श्रावकों ने इस कार्य में रुचि ली। उनमें श्री श्रीचंदजी रामपुरिया, श्री मदनचन्दजी