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आगम- सम्पादन की यात्रा
१४. आगम-कार्य : नए नए उन्मेष
की
शब्द -
- सूची
इस
कार्य में
वि. सं. २०१२ चैत्र शुक्ला १३ को आचार्यश्री तुलसी ने एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए आगम- सम्पादन की घोषणा की। उनकी देख-रेख में आगम-अन्वेषण का कार्य प्रारम्भ हुआ । कार्य पैंतालीस आगमों की संकलना के संकल्प से प्रारंभ हुआ। लगभग बत्तीस आगमों उज्जैन चतुर्मास वि. सं. २०१२ के अन्त तक तैयार हो गई। अनेक साधु-साध्वी लगे थे । कुछ समय बाद आगम-शब्दकोश का कार्य भी चला। छह आगमों का कार्य संपन्न हुआ। कार्य चल ही रहा था कि आचार्यश्री की यात्रा का कार्यक्रम बना और कलकत्ता की यात्रा प्रारंभ हो गई । इसलिए कोश का कार्य स्थगित कर देना पड़ा। दशवैकालिक सूत्र का कार्य चालू था । वह कलकत्ता के यात्राकाल में लगभग पूर्ण हो गया। उसके बाद उत्तराध्ययन, स्थानांग, समवायांग और निरयावलिका का कार्य भी क्रमशः सम्पन्न हुआ। सूत्रकृतांग आदि अठारह सूत्रों का पाठ - 1 ठ - निर्धारण हुआ और वर्तमान में 'रायपसेणीय' सूत्र का पाठ - संशोधन हो रहा है। यात्रा के कारण समय का अभाव और सामग्री की अल्पता रहती है, फिर भी कार्य पूर्णतः स्थगित नहीं हुआ। वह अपनी गति से चलता रहा।
इस कार्यकाल में कार्यपद्धति में संशोधन, परिमार्जन होता रहा । समयसमय पर विद्वानों से विचार-विनिमय भी हुआ और आगम-कार्य की गतिविधि से अनेक विद्वान् परिचित हुए ।
अनेक साधु-साध्वी इस कार्य की ओर आकृष्ट हुए । अनेक नवीन उन्मेष आए। साधुओं में आगम-ज्ञान के विविध स्रोतों को खोज निकालने के लिए साप्ताहिक गोष्ठियां चलीं । प्रति सप्ताह एक - एक मुनि अपने-अपने निर्धारित विषय पर भाषण करता । प्रश्नोत्तर भी चलते और अन्त में आगम-कार्य के प्रधान निर्देशक मुनिश्री नथमलजी उपसंहारात्मक भाषण करते हुए विषय पर विशद प्रकाश डालते। कभी-कभी यह गोष्ठी आचार्यश्री के सान्निध्य में भी चलती थी।
इसी प्रवृत्ति के फलस्वरूप साधुओं ने एक हस्तलिखित पत्रिका के प्रकाशन की बात सोची और कुछेक साधुओं-मुनि मधुकरजी, मुनि सुखलालजी, मुनिश्री चन्द्रजी ने त्रैमासिक शोध पत्रिका 'एषणा' की रूपरेखा