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आगम- सम्पादन की यात्रा
बहुत ही सर
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कारण नीरस लगते थे, उन्हें जब पूरा कर पढ़ा गया, तब
लगने लगे ।
पाठ
आचार्यश्री अनेक बार कहते हैं- आगम- सम्पादन के विविध कार्यों में ठ - संशोधन का कार्य सबसे महत्त्वपूर्ण है । पाठ-निर्धारण का अर्थ केवल यही नहीं कि प्राचीन प्रतियों के विभिन्न पाठों को शोधकर एक पाठ को मुख्य मान लिया जाए। अभी-अभी निशीथ सूत्र के पाठ का संशोधन हुआ। कई स्थलों पर पाठ का अर्थ सहजगम्य नहीं हो पा रहा था । तब एक दिन आचार्यश्री ने कहा - 'हमें निशीथ सूत्रों को भाष्य व चूर्णि के साथ-साथ पढ़ना है ।'
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वैशाख का महीना । चिलचिलाती धूप में बारह मील का विहार । गुजरात का प्रदेश | हम प्रातः कच्चे रास्ते से चले और लगभग सवा दस बजे सांतलपुर पहुंचे । विहार बहुत लम्बा था । आचार्यश्री से निवेदन किया कि साथ में वृद्ध, बाल, ग्लान साधु-साध्वियां हैं । इतना लम्बा विहार उनके लिए अशक्य है। इस प्रार्थना से पूर्व आचार्यश्री ने लम्बे विहार का निर्णय कर लिया था, अतः संकल्प की भाषा में कहा- 'मैं निश्चय कर चुका हूं, इस निश्चय की घोषणा भी हो चुकी है। मुझे तो सांतलपुर पहुंचना ही है । जो असमर्थ हैं, वे दूसरे रास्ते से सायंकाल तक पहुंच सकते हैं । इस कथन से साधुओं ने कुछ सोचा और सभी लम्बे विहार के लिए चल पड़े। एक संत के घुटने में दर्द उठा, इसलिए वे दस मील वाले गांव में रुके और उनकी परिचर्या में दो मुनि और रहे । शेष सभी यथासमय स्थान पर पहुंच गए। साधु-साध्वियां पानी लेकर दूर तक सामने आ गए थे। आचार्यश्री ने तथा संतों ने पानी पिया । आज सूर्य पीठ के पीछे था और ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही थी । अतः क्लान्ति कुछ कम हुई । विहार से आते ही आचार्यप्रवर ने 'शिथिलीकरण' प्रारम्भ कर दिया। साथ वाले श्रावकों ने सोचा, आज आचार्यश्री बहुत थक गए हैं, इसीलिए सो रहे हैं। कुछ विश्राम कर आचार्यप्रवर अपने कार्य में लग गए। हमने सोचा कि आज आगम-पाठसंशोधन का कार्य स्थगित रहेगा, परन्तु विश्राम कर उठते ही आचार्यश्री ने संतों को बुला भेजा और पाठ संशोधन का कार्य प्रारम्भ कर दिया ।
आचार्यश्री ने कहा, 'विहार चाहे कितना ही लम्बा क्यों न हो, आगमकार्य में कोई अवरोध नहीं होना चाहिए । आगम-कार्य करते समय मेरा मानसिक तोष इतना बढ़ जाता है कि समस्त शारीरिक क्लान्ति मिट जाती है । आगम-कार्य हमारे लिए खुराक है । मेरा अनुमान है कि इस कार्य के परिपार्श्व