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आगम-सम्पादन की यात्रा ३. टिप्पण
आगमगत विशेष शब्दों के अर्थ तथा विभिन्न स्थलों के स्पष्टीकरण के लिए टिप्पण लिखना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। इनके बिना शब्द तथा स्थल अत्यन्त दुरूह हो जाते हैं। हमने टिप्पणों के लेखन में प्राचीन व्याख्या-ग्रंथों तथा आधुनिक सामग्री का पूरा-पूरा उपयोग करने का प्रयत्न किया है। फिर भी यत्र-तत्र सामग्री के अभाव में कुछेक शब्द के अर्थ आज भी अन्वेषणीय रह जाते हैं।
उत्तराध्ययन तथा स्थानांग के विस्तृत टिप्पण तैयार हैं और दशवैकालिक भी सटिप्पण प्रकाश में आ चुका है। उत्तराध्ययन प्रकाश्यमान
४. शब्दानुक्रम
प्रत्येक आगम के साथ उस आगम में प्रयुक्त सभी शब्दों का एक अनुक्रम तथा सभी प्रमाण-स्थलों का निर्देश, आज के शोध की सद्यस्क अपेक्षा है। इसके बिना शोध-कार्य अधूरा रह जाता है। हमने प्रत्येक आगम के शब्दानुक्रम (सप्रमाण) को परिशिष्ट में दिया है। इससे जिज्ञासु व्यक्तियों को शब्दों की खोज में काफी सुगमता हो जाती है। इसके साथ-साथ नामानुक्रम आदि-आदि उपांग भी देते रहे हैं।
पद्यमय आगमों का पदानुक्रम तथा गद्यमय आगमों का सूत्रानुक्रम देना निश्चित किया गया है। इसी के अनुसार कार्य भी चल रहा है।
इस कार्य में मुख्यरूप से मुनिश्री श्रीचन्द्रजी 'कमल' लगे हुए हैं और अभी-अभी उन्होंने नन्दी, . आचारांग (प्रथम), आवश्यक, निशीथ तथा उत्तराध्ययन का शब्दानुक्रम, नामानुक्रम आदि तैयार किया
है।
मुनिश्री हनुमानमलजी (सरदारशहर) उनके सहयोगी रहे हैं तथा आजकल वे आचारांग चूला के शब्दानुक्रम में लगे हुए हैं।
मुनिश्री किशनलालजी सूत्रकृतांग का ‘पदानुक्रम' तैयार कर रहे हैं।
साध्वीश्री सूरजकुमारीजी, साध्वीश्री जयश्रीजी तथा साध्वीश्री कनकश्रीजी ने उत्तराध्ययनसूत्र का पदानुकम तैयार किया है।