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४. जीहकं हिं
रसेहिं,
पेम्मं
णाभिणिवेस ।
दारुणं कक्कसं रसं, कंतेहिं,
जीहाए अहियासए । णाभिणिवेस ।
पेम्मं
दारुणं कक्कसं फासं,
कारणं अहियासए ।
एवं रागदोसा, पंचहिं इंदियविसएहिं गहिता । आदिअंतग्गहणेणं मज्झिल्ला अट्ठ विसया गहिता भवंति । एवं इह वि महंतं सुत्तं मा भवउत्ति आदिअंतग्गहिता...(निशीथभाष्य, चूर्णि भाग ३, पृ. ४८३ )
लिपिकर्त्ता द्वारा किया गया संक्षेपीकरण का एक अन्य उदाहरण मैं प्रस्तुत कर रहा हूं ।
दशवैकालिक सूत्र के पांचवें अध्ययन के प्रथम उद्देशक का तेतीसवां, चौतीसवां श्लोक इस प्रकार है
आगम- सम्पादन की यात्रा
५. सुहफासेहिं
• एवं उदओल्ले ससिणिद्धे, ससरक्खे मट्टिया ऊसे । हरियाले हिंगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे ॥ • गेरुय वण्णिय सेडिय, सोरट्ठिय पिट्ठ कुक्कुसकए य । उक्कट्ठमसंसट्टे, संस चेव बोधव्वे ॥
टीकाकार के अनुसार ये दो गाथाएं हैं। चूर्णि में इनके स्थान पर सत्तरह श्लोक हैं। टीकाभिमत गाथाओं में 'एवं' और 'बोधव्वं' - ये दो शब्द जो हैं वे इस बात के सूचक हैं कि ये संग्रह - गाथाएं हैं। जान पड़ता है कि पहले ये श्लोक भिन्न-भिन्न थे, फिर बाद में संक्षेपीकरण की दृष्टि से उनका थोड़े में संग्रहण कर लिया गया । यह कब और किसने किया? इसकी निश्चित जानकारी हमें नहीं है । इसके बारे में इतना ही अनुमान किया जा सकता है कि यह संक्षेपीकरण चूर्णि और टीका के निर्माण का मध्यवर्ती है और लिपिकारों ने अपनी सुविधा के लिए ऐसा किया है । अगस्त्यसिंह की चूर्णि में वे सत्तरह गाथाएं इस प्रकार हैं
उदओल्लेण हत्थेण, दव्वीए भायणेण वा । देंतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ।।
इसी प्रकार 'ससिणिद्धेण हत्थेण' आदि-आदि पूरी गाथाएं वहां उद्धृत हैं। संक्षेपीकरण का एक और उदाहरण मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूं । यह संक्षेपीकरण बहुत ही विचित्र रूप से हुआ है। इसमें 'जाव', 'एवं' आदि