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आगम- सम्पादन की यात्रा
५. पाठ-संशोधन : एक मौलिक कार्य
भवन-निर्माण में नींव का जो मूल्य है उससे अधिक मूल्य है आगमसम्पादन में पाठ-संशोधन का । यह एक मौलिक कार्य है। उसके बिना अर्थ का निर्धारण नहीं किया जा सकता। पाठ संशोधन के अभाव में आगमों में अनेक जगह त्रुटियां रहीं और उनका अर्थ भी आगमों में उल्लिखित पाठ के आधार पर किया गया। इससे कहीं कहीं सम्यक् पाठ न पकड़ पाने के कारण शब्दों के अर्थ गलत हो गए ।
हमें आगम कार्य करते-करते लगभग एक युग बीत रहा है । इस अवधि में अनेकानेक नए अनुभव प्राप्त हुए, सैकड़ों ग्रंथों का तलस्पर्शी अध्ययन हुआ और आगम तथा व्याख्या - साहित्य को सूक्ष्मता से समझने का सुअवसर मिला। इस गुरुतर कार्य को सम्पन्न करने में लगभग बीस साधुसाध्वियां अपना-अपना कार्य कर रहे हैं। हमारे इस शोध कार्य के प्रमुख हैं- आचार्यश्री तुलसी और प्रधान सम्पादक और निर्देशक हैं मुनिश्री नथमलजी ।
यद्यपि आचार्यश्री इस कार्य में अपना अधिकांश समय लगाने का प्रयत्न करते हैं, किन्तु एक प्रगतिशील धर्मसंघ के आचार्य होने के कारण अन्याय अनेक प्रवृत्तियों में उन्हें संलग्न रहना पड़ता है । तेरापंथ एक केन्द्रशासित संघ है । आचार्य उसके केन्द्र हैं । अतः छोटी-से-छोटी और बड़ीसे बड़ी प्रवृत्ति में उनकी संलग्नता आवश्यक होती है । इसीलिए वे किसी एक ही प्रवृत्ति में अपना सारा समय नहीं लगा सकते । किन्तु इतना उत्तरदायित्व होते हुए भी वे आगम-कार्य के लिए निरंतर चिन्तनशील और कार्य - तत्पर रहते हैं । कभी-कभी अपनी अन्यान्य प्रवृत्तियों को गौण कर इसको प्रमुखता देते हैं । इसीलिए कृतज्ञता की भाषा में मुनिश्री नथमलजी ने लिखा है- 'आगम - कार्य की सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग, मार्गदर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा इस गुरुतर कार्य में का शक्ति - बीज है । '
प्रवृत्त होने
मुनिश्री नथमलजी ने इस शोध कार्य में अनेक नए आयाम खोले हैं और अनेक साधु-साध्वियों को इस कार्य की ओर आकृष्ट किया है। उनका समूचा समय इसी को गतिशील बनाए रखने में व्यतीत होता है और उन्होंने