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आगम-शोध-कार्य : एक पर्यवेक्षण
आगम-शोध-कार्य के ये प्रमुख अंग हैं और इन पर कार्य गतिशील
___ इनके अतिरिक्त शोध-कार्य के अनेक उपांग भी हैं। उन सबकी क्रियान्विति में अनेक साधु-साध्वियां संलग्न हैं।
साध्वीश्री कानकुमारीजी ने 'उत्तराध्ययनसूत्र' का 'छन्दबोध' तैयार किया है। साध्वीश्री मंजुलाजी उपासकदशा तथा साध्वीश्री संघमित्राजी
औपपातिकसूत्र के विभिन्न अंगों पर कार्य कर रही हैं। ____मुनिश्री सुखलालजी उत्तराध्ययन की कथाओं के सम्पादन तथा अनुवाद में लगे हुए हैं।
मुनिश्री सागरमलजी 'श्रमण' आचारांगसूत्र (प्रथम) के संशोधित पाठ की हस्तलिखित प्रति तैयार कर रहे हैं।
प्रत्येक सूत्र की विस्तृत भूमिका तथा समीक्षात्मक अध्ययन भी लिखे जा रहे हैं। दशवैकालिक तथा उत्तराध्ययन के समीक्षात्मक अध्ययन लिखे जा चुके हैं।
इस प्रकार हमारे इस कार्य में आचार्यश्री के साथ रहने वाले तथा अन्यत्र विहारी अनेक साधु-साध्वियां संलग्न हैं। तेरापंथी महासभा इसके प्रकाशन में दत्तचित्त है। आदर्श साहित्य संघ. भी इस दिशा में कई वर्षों से अपनी महत्त्वपूर्ण सेवाएं दे रहा है। कुछेक श्रावक भी इस कार्य में यथायोग्य सहयोग देते रहे हैं।
आगम-शोध-कार्य की समस्त प्रवृत्तियों के अंतिम निर्णायक तथा वाचना-प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं और इस दिशा में उनके अनन्य सहयोगी तथा संपूर्ण शोध-कार्य के प्रधान निर्देशक एवं सम्पादक हैं निकाय सचिव मुनिश्री नथमलजी। वस्तुतः इनकी सतत प्रेरणा और संलग्नता ने कार्य को गति दी है तथा अनेक साधुओं को श्रुत के इस महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान में योगदान देने के लिए प्रेरित किया है।
निर्णायकता के ये दो केन्द्र हमारे शोध-कार्य के प्राण तथा प्रकाशस्तम्भ हैं। इनकी उद्यमपरता, कार्यनिष्ठा, सूक्ष्म तत्त्वान्वेषण की मेधा तथा दूरदर्शिता से हम लाभान्वित हुए हैं, हो रहे ह और चिरकाल तक होते रहेंगे।