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आगम-शोध-कार्य : एक पर्यवेक्षण सविधा थी। कार्ड प्रणाली से कोश का कार्य प्रारम्भ हुआ। इसमें मुनिश्री नथमलजी, मुनिश्री बुद्धमल्लजी और मुनिश्री मीठालालजी निर्देशक के रूप में कार्य करते थे और लगभग तेरह मुनि उनके सहयोगी थे। उनके नाम ये हैं
१. मुनिश्री सुमेरमलजी (लाडनूं) ८. मुनिश्री ताराचंदजी २. मुनिश्री सुमेरमलजी 'सुमन' ९. मुनिश्री शुभकरणजी ३. मुनिश्री दुलहराजजी
१०. मुनिश्री हंसराजजी ४. मुनिश्री श्रीचंद्रजी 'कमल' ११. मुनिश्री बसंतीलालजी ५. मुनिश्री हीरालालजी
१२. मुनिश्री हनुमानमलजी ६. मुनिश्री जतनमलजी
१३. मुनिश्री मधुकरजी ७. मुनिश्री मोहनलालजी
उस चतुर्मास में छह आगमों का शब्दकोश तैयार हो गया। उस वर्ष लाडनूं में माघ-महोत्सव सम्पन्न हुआ और वहां आचार्यश्री ने कलकत्ता की लम्बी यात्रा करने का निर्णय ले लिया। इसलिए शब्दकोश का कार्य स्थगित कर देना पड़ा। इस स्थगन का मुख्य कारण यह भी था कि पाठ-संशोधन के कार्य को प्राथमिकता दी गई और बीस-बाईस आगमों का पाठ-संशोधन कर लिया गया। साथ-साथ अनेक आगमों के अनुवाद, टिप्पण, शब्द-सूची भी साथ-साथ तैयार होते गए। अवशिष्ट आगमों के पाठ-संशोधन का कार्य चालू है और अनुवाद आदि भी चल रहे हैं।
४. आगम-शोध-कार्य : एक पर्यवेक्षण आगम-शोध-कार्य को चलते-चलते लगभग एक युग बीत चला है। इस कार्य-काल में अनेक साधु-साध्वियों ने अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार इसमें हाथ बंटाया है। कार्य का प्रारम्भ एक छोटी-सी कल्पना से हुआ था, किन्तु आज वह कार्य बहुत विस्तार पा चुका है। आज भी अनेक साधु-साध्वियां उसमें संलग्न हैं।
इस निबन्ध में आगम-शोध-कार्य, उसकी पद्धति और कार्य करने वालों के नाम प्रस्तुत किए जा रहे हैं, जिससे यह अनुमान सहजतया हो सकेगा कि श्रुत के इस महायज्ञ में कितने-कितने व्यक्ति लगे हुए हैं।