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अगस्ति रस
अगस्त्य मृगज :
अगस्ति रस ayasti Ti8 मं० पु. देवी- कबीला के साथ देने : उदर रोग का नाश होता ग्रगम्यरमः।
है। (र० स०६०२० से.चि.) प्रागस्ति सूतगजः ॥asti sutifa.jali-20 अगस्यरसारम् astynasayanam -
पाग, तांबा, जमाल गांटा, लोहा, मैनशिल निपला, निकुटा, नि.गन्ध (बाल चीनी, इलायची, हल्दी और गंधक इन्हें नुख्यभाग ले कजली
तेजपात, ) निशोथ, वायविडंग, चम्य, चित्रक, प्रस्तुन करें पुनः त्रिकुटा, चित्रक, भांगरा, श्रदरग्ब, धत्तर बीज, बिगु कान्ता, सुगन्धवाला, चारक, निम्बू , सम्हाल, श्रमल नाम श्रीर मूली इनके लवंग, नागकेशर, कुलिअन, सफेद मुसली, रमों में पृथक पृथक् भावना, गृह के साथ काकामिंगी, भांग और अशन वृक्ष की छाल सेवन करने से सर्व प्रकार का उदर रोग दूर होना प्रत्येक 1-1 नो० ले चूर्ण कर इसमें 2 लो. ई। मात्रा--३ रत्ती।
अभ्रक भम्म मिला पुनः शुद्ध शिलाजीत - तो. (० ल० र चि० मो००) उदाधिकार और १०० वर्षका पुराना मर डर सब के बराबर भगम्य gastya-हिं० २०५०)
मिला सतावर का रय । मेर, गांमृग प्राधा अगस्त्य:Hist yah मं० पु. अगम्मिया
पर बकरी का दुध मेर और ॥ मेर शकर अग पत्याजय ।।gustyi-jaya )
मिलाकर पाक विधि मे का । जब कार गुड़ ( S i grandiflora, Pors)
पाक की तरह मिन्द्र होजाए तो किने पात्र में त्रिका।
रावें । मात्रा--5-नाम । (२)एक ऋपि का नाम जिनके पिता मित्र
गुग--संग्रहणी, शूल, सूजन, गुदभ्रंश, प्रमेह, यम थे । इनकी मैत्रा घणि और शेय, कुभ
विषमज्वर, जीर्णज्वर, य, श्वास, हिचकी, संभव, घटोद्भव और कुम्भज भी कहते हैं ।
भगन्दर, हदयशूल, पार्श्वशूल, पक्रि शूल, अकांच विन्ध्य कृट, समुद्र चुलक और पीनादि हमके अन्य
अम्लपित्त, पांडुरोग, कामला, पानाह, उदररोग, नाम है। कहीं कहीं पुराणों में इन्हें पुलमन्य का
और बवासीर को यह स्मायन नष्ट करता है। पुत्र भी लिखा है।
इस परम मध्य वातानयिक नान वाले रसायन अगम्न्यनामग्य Agastya-limity-ता० का अगम्य ऋषि ने बताया है। यह बुड्ढे को
जलकुम्भी-हि। कुभिका-मं० (pistiii कान शनि देता है । स्त्रियों की पुष्टि देता है। stratistes, li.)
और वृद्भास्त्रियों को भी गर्भ धारण कराता और अगस्त्य मांदकः ।।51yu motkah-सं० प्रदा को दूर करता है । ना०वि० ।
पं. अशांधिकार में वर्षिन यांग विशेय-हड़ अगम्य वटी styanati) मं० त्री ३ पल, त्रिकुटा ३ पल, जपत्र अत्यापल, गृह अममित बटोayasti uti) बच १० पल प्राधा पल में मांदकम्न्त करें। इस संवन कृचिला 10 पल, दोनों को नुपी के काढ़े में पका करने में शोध, अर्ग, ग्रह शादीप, उदावन तथा कर चूर्ण करें तथा इसमें त्रिकुटा, मन्जी ग्वार, काम का नाश होता है।
जवाम्बार,अजवाइन, अजमोद, खुरासानी बंग० सं० अर्श० यो० श्ली०४७
प्राजवाइन, विडंग, हींग, मैन्धघ, बिड, पीचर अगम्न्यासः instein-. उदर ।
नमक, प्रत्येक का चूर्ण ३ पल मिलाकर नीबू के
रम में घोट कर बेर प्रमाण गालियां बनाएँ। संगघ्न रम विशेष-पारा, गंधक, जयपाल वीज, लाह, शिलाजनु, ताम्रभस्म, हल्दी समभाग
गुण-शूल, मन्दाग्नि, गुल्म, कृमि, तिल्ली ग्रामलेकर त्रिकुटा, भांगरा, दरख, नीम की छाल,
यानको नष्ट करनी है । वृ.नि. र. शुलचि० सम्भाल , स्वर्ण वल्ली के एकत्र क्वाथ मैं एकबार अगस्त्य सूतराज रसः agastya-sutarija मईनकर रक्वें । मात्रा- १ रत्ती प्रमाण गड़, हरड़ rasah-सं० पु. पारा, गंधक, सिंगरफ,
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