Book Title: Aayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
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अस्पग़म
८१
प्लां०), जिरीर (मेमा० ) -- फा० | बनपिरिंग बं० । ट्रिपलियम् श्रॉफिसिनेली ( Trifolium officinale, Fild ), माली लोटस ऑफिसिनैलिस (Mellotus officin alis) - 1 इक्लो लुल्मलिक - अ० । या शिम्बी वर्ग
स्पर्शा asparshá सं० स्त्री० श्रकासवेल, श्राकाशवली । थालोकलता- बं० ( ('useuta reflexa ) रा०नि० ब० म अस्पस्त aspasta :-फा० नस्तरन, व्रत, अस्फ़न asfatia 1 कमीज़ह, तर्फ़ील, दमचह । (Trifolium pratensis) इ० हैं ०
गा० ।
अ (ऐ) स्पाइरोन aspirine - इ० देखो -- ऐस्पाइरीन |
अ ( प ) स्पालेन्स इण्डिकस aspalanthus indicus, dinsle - ले० शिवनिम्ब-मह० | ( Indigofera aspalanthoides, Paht.) फो० इ० १२.० १ अस्पालांटा aspalota - जलपीपर,
तबूढी, चुकन । ना० २ भा० । देखो - जलपिप्पली । स्पियूल aspiyúsa - अ० इस्पगोल, ईसबगोल, ईषद्गोल | ( Ispaghula ) अस्पोडियम् फिलिक्स मैस aspedium fil ix mace-ले० मेलफर्न ।
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अस्फटिकीय
श्रस्पीड स्पर्मा aspedosperma-ले० एक पौधा है ।
स्पीड स्पर्मा का लंङ्का aspedosperma cubreko blanco ले. एक पौधा है ।
अस्पेरगasperg-फा० श्रस्फक फा० | जरीर- अ० । त्रायमाण, गुले जलील-बम्ब० । गाफ़िज़ पं० । ( Delphinium zalil, fitch, et Hemsley.) फा० ई० १ भा० । श्रस्रजी aspergi-फ्रां० नागदौन - हिं०। (Artemisia vulgaris . )
(NO. J.reguminose) उत्पत्तिस्थान -- नुब्रा तथा लेदक |
प्रयोगांश- चुप ।
उपयोग – यह खुप स्वस्थापक हैं | व्रतों पर भी इसका उपयोग होता हैं । वैट । अस्पर्गम् asparghan - फा० रैहा । (Oci | अस्फāasfa - अ० श्रन्तिम श्वास
मरणावस्था,
मरणासन्न, मुमूर्षु |
mum basilicum, Line) (इ) स्पर्ज़ह a-i-sparzah - फ़ा इस्पग़ोल । ईसबगोल, ईषद्गोल - हि० ( Ispaghula) अस्पतparta] क़फ़ रूल् यहूद | यह एक प्रकार का पापामु हैं 1 See-qafrul-ya
पाइण्ट श्री डेध ( Point of death. )-go!
अस्फच asfaa - श्र० श्याम, काला । ( Bla
húda.
ck.)
अस्फङ्कारून asfangárúna-रु० अस्फुञ्ज asfanja --फा
}
श्रश्र मुर्दा, सुश्रा बादल, स्पञ्ज । Sponge (Spongia officinalis, )
अस्फ़ज का जलाना अर्थात् संख्तह
करना
मुत्रा बादल के जलाने की विधिअस्फञ्ज अर्थात् मुश्रा बादल को साबुन से धोकर भली भाँति निचोड़ कर शुल्क कर लें । पुनः इसे बारीक कतर कर मिट्टी के बर्तन में रखकर अग्नि पर इतना जलाएँ जिसमें वह पीसने योग्य हो जाए । परन्तु इतना न जलाएँ कि जलकर राख हो जाए । तत्पश्चात् यांगों में प्रयुक्त करें । ध्या० ६.० भा० ३ ।
अस्फअ मु.हरिक asianja-mahrig अस्फुञ्ज सांखना asfanja sokhta
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ऋ०, फा० जलाया हुआ मुश्रा बादल | अस्फटिक asphatikiya - हिं० वि० वह जिसके स्फटिक अर्थात् रवे न हो । बेरवा | अमूर्त | स्फटिक रहित | ( Amorphous. )

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