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तेखा
ल
पृष्ठ कालम पंक्ति अशुद्ध शुद्ध पृष्ठ कॉलम चक्ति अशुद्ध शुद्ध ६८५ २ १६ ऊरता ऊद्ध रेता
कपड़े से ढंकदें। इससे २४ तुन्तुओं तन्तुओं |
सुखपूर्वक पसीने निक" , ३० वास्तधिक वास्तविकता
लेंगे। इसको 'अश्मघन देखो
स्वेद'या कर्ष स्वेद कहते Sqirits spirits
हैं। च० स०अ०१४। से से से
७६३ १ २५ अभाव श्रभाव १६ Onacardium Anacardium
१ १५ अगाह्य अंग्राम माम भाग
७७० २ १७ पिकाएँ पकाएँ २५ लाह को लोह की । ७७६ १ १४ दाता होता
गाड़ ७०८ १ २५
Alarge A large " ३२ श्रोर और ३१ alikh alikah | ७७६ २ - दोबार दाबास २ ५ श्राप पशुक अल्पशुक | ७८० १२ प्रचीन प्राचीन
अमट ७६१ १ १ अष्टपादिका अष्टपादिका , २८ अगलालग अगलागल । ७९५ २ २६ फस्म भस्म ७३१ २ २ उता उतार ८०७ २ ३६ धूस धूसर
३२ कारला क्लोरल - २ १ अस्कर असकङ्कर ७३७ १ १ नाड्यात्र सादक नाड्यवसादक १२
५ तअनज तअजम 040 5 aváchính aváchinah
१५ अवस्थ्यावरक अस्थ्यावरक ७३४ २ १६]nssolubility lnsolub. |
indiucum indicum ility
१ ३५ फ इलिय्यल फाइलिय्यह ७५० १ १० रक्तभायुक्त रक्ताभायुक्त
, २ २६ सय सडाँत्र , , ३८ asha ma asham
,, ३७ प्रमाव
प्रभाच ,, २ ६ ashitambhl. ashitam
८२५ २ ११ शबर शंकर avah bhavah
३० २ १२ Phyllant. Phyllan. ७५६ २ २७ अश्मन स्वेद अश्मघन स्वेदः ।
husc thus oşbmaghanasvedal सं.पु. रोगी प्रमाण एक
सूचना-पृष्ट २५. से १२७ तक की हस्तलिपि स्थूल शिला का वातनाशक साफ़ न रहने के कारण उसमें कुछ अधिक अशुलकड़ियाक अंगार से तल दिया रह गइह। आग माजा खास खास कर उष्ण जलसे धो डाले, अशुद्धियाँ थीं उन्हें हो यहाँ दिया गया है। शेष पुनः उस पर कस्बल वा
दृष्टि दोष से रहे हुए तथा संशोधन संबंधी एवं रेशमी वस्त्र बिछा कर
प्राकाशकीय सामान्य भूलों के लिए हम पाठको वातनाशक तैलों द्वारा के क्षमा प्रार्थी है। दो तीन स्थलों पर क्रम में अभ्यङ्ग किए हुए रोगीको | भी कुछ व्यतिक्रम हो गया है। प्राशा है उदार सुन्नपूर्वक सुला कर रुरु | पाठकगण उसे सुधार कर पढ़ेंगे। मृगके चर्म या रेशमी ।
-प्रकाशक:
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