Book Title: Aayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 879
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रक्षिक मूलक । (२) वन चटक, जंगली गौरैया। अक्षा शिरोधिजा aksha.shirodhiji-सं० ( Wild-sparrow ) वे निघ० । (-मा) स्त्री. मन्यास्थ शिरा । धै० निधः । स्त्री. (1) अद्धान्त । ईर्ष्या । ( Envy.) श० अक्षसमा aksha-suna-सं० स्त्री० (Axis र. (२) असमर्थ । अशक । vertobra, second cervic:1 verअक्षम aksharma-हिं० वि० [सं.] [संज्ञा ! tebra.) अक्षमता] (1) मारहित । असहिष्णु । (२) असमर्थ । अशक । लाचार । अक्षसमा पृष्ठ कोया संधिः akshasama-pri shthakiya.sandhib-सं०क्ली (Occ. अक्षमता akshamati-६० संज्ञा स्त्री० [सं०] ipitc- $111 joint. ) (१)क्षमा का प्रभाव । अस अक्षसस्यम् aksha-sasyam-सं० क्लो० करिस्थ असामय। मन्त्रमाला akshamāla-हिं० संज्ञा स्त्री० [सं०] फल, कैथ । कवि-म० ( Feronia ele phantan.) वै० निघ० । रुद्राक्ष की माला। अक्षसूत्र akshasutra-हिं० संज्ञा पु० [सं०] मक्षय akshayu हि० वि० [सं०] | रुद्राक्ष की माला। अनथ्य akshayya , जिसका क्षय न हो | अक्षहान aks hauhiniu-हिं० वि० [सं०] नेत्रअविनाशी। अनश्वर । सदा रहने वाला। हीन । अंधा। अज्ञर: aksharah-सं० मक्षांश nkshansha -हिं० संज्ञा पु, [सं०] अक्षर aka bara-हि से (१)भूगोल पर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवसे होतीहुई (1) अपामार्ग, चिचड़ा । ( Achyran- एक रेखा मानकर उसके ३६. भाग किए गए हैं। thes asparn.) हे. च.।-सं. क्ली इन ३६० अंशों पर से होती हुई ३६० रेखाएं (२) जम्न (Water )। (३) अपामार्ग पूर्व पश्चिम भूमध्य रेखा के सामान्तर मानी जल । (५) आकाश । (१) अकारादि वर्ण। गई हैं। अक्षांश की गिनती विषवत् वा भूमध्य हरफ |-हिं० वि० मन्युन । स्थिर । अविनाशी । ! रेखा से की जाती है। (२) वह कोश जहाँ पर नित्य। चितिज का तल पृथ्वी के प्रब से कटता है। अक्षरुन्नकम् aksha-ruclhakam-सं. क्ली. अक्षार लवण akshara-lavana-हि. संज्ञा मृशिका जवण | खारी मिट्टी। सोस-बं०। सोर प.(१) वह लवण जिस में चार न हो। मिट-मह। ० निघ० । नमक जो मिट्टी से निकला हो । नोट-कोई मशरेखा aksha-rekha-हि. संज्ञा स्त्रो० कोई सेंधे और समुद्र लवण को अधार लवण [सं०] धुरी की रेखा । वह सीधी रेखा जो मानते हैं। (२)वह हविष्य भोजन जिसमें नमक किसी गोल पदार्थ के भीतर केन्द्र से होती हुई न हो और जो अशौच और यज्ञ में काम पाये। दोनों पृष्ठों पर लंग रूप से गिरे। अकृत्रिम सँधव प्रादि । जैसे दूध, घी, प्रावल, असल गुड़: akshala.gndab-सं० पु. तिक मूंग और जौ आदि । हारलता। (Axis cylinder.)। अक्षि akshi-सं0 क्लीo, हिं0 सज्ञा श्री० नेत्र, अक्षवाट aksha-vat-हिं० संज्ञा पु० [सं०] अखि, नयन । (Eye.) रा0नि0 300 अखाड़ा। कुश्ती लड़ने की जगह । प्रक्षिकः akshikali-स० पु . । अक्षवार्यवान् aksha-virvvavin-सं. प. अक्षिक akshika-हिं० सज्ञा' श्वेत करवीर, श्वेत कनेर | Nexium odo (A)रञ्जन वृक्ष । पाउच गाल-401 (DalbTum (White yar. of-) वै विष०।। ergia pujeiniensis.) रत्ना०। (२) For Private and Personal Use Only

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