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अरिमेदः
अरिश शाडाया रासायनिक-संगठन-इसके पुष्प द्वारा की उत्तम प्रतिनिधि है; परन्तु जल में डालने से प्रस्तुत तैल में बेझएल्डीहाइड,सैलिसिलिक एसिड, यह सरेशवत् हो जाती है । इसकी कोमल पमीथिल सैलीसिलेट, बेञ्जिल एलकोहल, अन
त्तियों को किञ्चित् जल में पीसकर पूयमेह अर्थात् एलडीहाइड प्रभृति होते हैं।
सूजाक रोगी को पिलाते हैं। इसके पुष्प की
मवण करने पर इससे एक प्रकार का सुस्वादु प्रयोगांश-कांड तथा मूलवल्कल, पन, निर्यास, फली और पुष्प ।
इतर प्राप्त होता है जो परिवर्तक प्रभाव के लिए . ओपध-निर्माणकाथ, लुबाब, तैल (अरि
प्रसिद्ध है। इसमें एक प्रकार का तेल होता है। मेदादि तैल-च. द०)।
शुक्रमेह में कामाहीपक औषधों के सहायक रूप
से इसका उपयोग करते हैं । मात्रा-वल्कल, काष्ठ तथा पुष्प चूर्ण १-४
अरिमेदाद्यतेलम् ariinedadyatailam-स० पाना भर । सार (खैर)---२ पाना भर । काष्ठ
क्ली यह तैल मुख रोगमें हितकारक है। पाठतथा वल्कल काथ-५--१० तो० ।
मूछित तिल तैल ८ श, काथार्थ विटखदिर गुणधर्म तथा उपयोग
( गुह बवुल) १२॥ श०, जल ६४ श. में आयुर्वेदीय मतानुसार
पकाएँ, जब १६ श० शेष रहे तब इसमें मजीडका रिमेद कषेला, उष्ण, तिक, भूतघ्न है और
२ तो० कल्क डालकर विधिवत् तेल सिद्ध कर शोफ ( सूजन ), अतिसार, कास तथा विसर्प का कार्य में लाएँ । च० ६० मुख ग. चि० । नाश करनेवाला है।
अरिय वापariya-voppa-मलनीम. निम्य। विटखदिर कटु, उष्ण, तिक, रक के दोष तथा
( Azadirachtal Indica, Ju$3.) अणदोष नाशक है तथा कण्डू (खुजली), विष,
स० फा० इं० विसर्प नाशक और ज्वर, कुड़, उन्माद तथा भूत
अरिया पोरियम् ariyi poriyam-मला. बाधा हरण करने वाला है । रा० नि० ब०।
ऐण्टिडेस्मा त्रुनियास ( Antidesma Bu. मुख एवं दन्त के रोग नाश करनेवाला तथा करडू, ( खुजलो), विष, श्लेष्म, कृमि, कुछ और
nias, Spreng.), fezani To (stilago
bunias, Linn., Riixb.)-ले० । व्रण नाशक है । मद०व०५।
कषैला, उरण, तिक, भुन विनाशक है तथा उत्पत्ति-स्थान-भारत के समग्र उप्यामुख रोग और दन्त रोग नाशक, रकदोप, रुधिर प्रधान प्रदेश । विकार, कण्डू ( स्वुजली), कृमि, कफ, शोथ, उपयोग–अम्ल एवं स्वेदक । पम्र सर्पदंश में ( सूजन), अतिसार, कास, विसर्प, विष, कुष्ठ । प्रयुक्र होने हैं। नए रहने पर इसे उबाल कर और व्रण का नाश करने वाला है । भा० पू० र औषशिक शरीर विकार में उपयोग करते हैं। भा. बटादि । भैप मुखरो० चि.। च० सू० (लिगडले) ४०।
अरिशि arishi-ता० चावल । ( Rice ) स० नव्यमत
फा० ई०। प्रभाव-संग्राही (संकोचक), स्निग्धताकारक और परिवर्तक । वल्कल संकोचक अर्थात् ग्राही परिशिना arishini कना० हरिद्रा, हलदी । और पुष्प उत्तेजक है।
Curcuma Longa, Linn. ( Root उपयोग--इसकी छाल का काढ़ा ( २० में of-) स० फा० इं०। १) संकोचक मुखधावन है। इस हेतु मसूदों से अरिशि शाडायाम arishishadayam ता. रक्त पाने प्रभृति में ,ह लाभदायक है। इसकी चावल की दारु, चावल की शराब । ( Liquor गोंद अरबी बर-निर्यास (Gum arabic) of rice. ) स० फा० ई० ।
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