Book Title: Aayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 772
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवलेह ७३ अवल्गुजा,-जा प्रवलेझ] (1) चटनी, चाटने वाली कोई वस्तु, । दूध, ईख का रस, पञ्चमूल के क्वाथ द्वारा सिद्ध भोज्य विशेष । लेई जो न अधिक गादी और न । किया हुआ यूष और अडूसे के क्वाथ में से किसी अधिक पतली हो और चाटी जाए। (२) औषध जो । एक का यथा योग्य अनुपान देना हितकारी है। प्पाटा जाए । ले योषध । प्राशः । जिह्वा द्वारा जिसका - दोषानुसार अनुपानों की मात्रा प्रास्वादन किया जाए उसे अबले हिका कहते हैं । | कफ व्याधि में १ पल, पित्त में २ पल और च० द. ज्व. चि०। लजक-अ० । लॉक घास में ३ पल की मात्रा प्रयोग में लाएँ। Loch, लिंक्टस Linctus, लिंक्चर Lincture, इलेक्चुअरी Electuary-ई०। मुख्य मुख्य प्रायुर्वेदोक्क अवलेह निम्न हैं:नोट-यूनानी-वैद्यक एवं डॉक्टरो अवलेह ! कण्टकार्यवलेह, च्यवनप्राशावलेह, कूष्मांडा. निर्माण क्रमादि के विशेष विवरणके लिए क्रमशः वलेह, स्वराडसूरणावलेह, अगस्यहरोतक्यवजेह, लऊक तथा लिक्टस शब्द के अन्तर्गत और कुटजावलेह, कुटजाष्टकावलेह इत्यादि । . प्रायुर्वेदीय वर्णन के लिए लेहः शब्द के अन्त- अवलेहनम् a valebanum-सं० लो० . र्गत देखें । अवलेहन avalehana-हिं० संज्ञा पुं० । ___ क्वाथ श्रादि अर्थात् स्वरस, फाण्ट एवं कल्क | . लेहन, प्राशन, चाटना, जीभ की नोक लगाकर प्रभृति को छानकर पुनः इतना पकाएँ कि वे गादे: खाना ( Licking, tasting with हो जाएँ। इसे रसक्रिया कहते हैं और यही the tongue.)। (२) चटनी । अवलेह पा लेह कहलाता है। इसकी मात्रा एक अवलेह्य avalehya-हिं० वि० [सं०] प्राश्य । पल (४ तोले) की है। यथा चाटने योग्य | क्वाथादीनां पुनः पाकादनत्वंसा रसक्रिया । अवलो avalo--ते. घोर राई, काली राई, राई, सोऽवलेहश्चलेहः स्याप्तन्मात्रा स्यात्पलो. असल राई, मकरा राई-हि। राजिका-सं० । स्मिताः॥ ( Brassica migra, Koch. ) यदि अवलेह में शकर प्रभृति डालने का परि- मेमो०। माण न दिया हो तो श्रोषधों के चूर्ण से चौगुनी अवलोकन ava.lokana-हि. संज्ञा प. मिश्री और गुड़ डालना हो तो चूर्ण से दूना डालें। [सं०] [वि. अवलोकित, अनलोकनीय ] जल या दूध प्रादि द्रव डालना हो तो चौगुना दर्शन, ईक्षण, दृष्टि देना, देखना ( View, मिलाना चाहिए । यथा ___sight, the l oking at any ob. सिता चतुर्गुणा कार्या चर्णाञ्च द्विगुणोगुड़ः।।। __ject.)। ( २ ) निरीक्षण । । द्रवं चतुर्गुण दद्यादिति सर्वत्र निश्चयः। अवल्कः avalkah-सं० पु. मेपशृङ्गी, मेढ़ाअवलेह सिद्ध होने की परीक्षा fanii ( Pistacia Integerrima, दी से उठाने पर यदि वह तंतु संयुक्र दिखाई Stercurt.)वै०निघ। दे, जल में डालने पर डूब जाए, द्रव रहित अर्थात् अवल्गजा avalgar ja-सं० स्त्री कृष्ण सोमराजी, खर हो, दबाने पर उसमें उँगलियों के निशान | Ba 1 Vernonia antholinintica पर जाएँ और वह सुगंध युक्र और सुरस हो तो ( The black var. of-)। हाकुच-बंग। उसे सुपच जानना चाहिए । यथा भेष. भल्ला० गुड़। सुपक्वे तन्तुमत्वं स्यादवलेहोऽतु मजति । अवल्गुजः,-जा avalgujrh,-ja-सं० १०, खरत्वं पीडित मुद्रां गन्धवर्ण रसोद्भवः॥ स्त्री०(1) कृष्णा सोमराजी । ( The black जहाँ पर अवलेह के अनुपान की व्यवस्था न var. of Vernonia anthelminदी गई हो वहाँ पर दोष और व्याधि के अनुसार | tica.) सु० चि०२५ श्र० । (२) सोमराजी, For Private and Personal Use Only

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