________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रविहित
७३६
अवाक् पुष्पी घृतम् अवहित avahita-हिं० वि० सं०] सावधान! । अवाको avaqi-अ० (२०५०), पौकिय्यह एकाग्र चित्त
(ए० व० ) देखो-ौकियह । भवही avahi-हिं० संज्ञा प० [सं० प्रबह-बिना :
अवाक् avāk-हि. वि० [सं० अवाच् ] (1) पानी का देश ] एक प्रकार का बबूर जो कांगड़े के:
वाक्य रहित, चुप, मौन, चुपचाप ( Speech. जिले में होता है । इसकी लपेट आर फीट की ।
less )| (२) स्तब्ध । जड़। स्तंभित । होती है . यह मैदानों में पैदा होता है और ।।
चकित । विस्मित। इसकी लकड़ी खेती के औजार बनाने नया छतों : के तहतों में काम आती है। हि० श० सा।
अवाक पुष्पा avik-pushpi-सं० (हिं० संशा)
स्त्रो० (१) हेमपुष्पी । Hemapushpi.) अवहोरा vahini-हिं० श्राम वृत । See
र०मा०। (२) सौंफ मधुरिका । (Madhuása.
Tika. ) शाहया । रत्ना० । रा०नि० प्रवक्षिप्त avukshiptan० ।
व० ४। ( ३ ) शत पुष्पी सोया-हि. । गिरा हुआ।
शुल्का बं० । बड़ी शोक-मह। (Ses-shata. अवक्षिप्त सन्धिः avakshipta-sandhih |
pushpah) रा०नि० व०४।०६० -संप सन्धि विश्लेष, संधिस, संधि क्युति.
प्रशशि० सुनिपण-चांगेरी चूत । (४) चार ( Disloention.) । "अयक्षिप्त" में संधि
पथ्यो । वह पौधा जिसके फून अधोमुख हो। दूर हट जाती है और तीव्र वेदना होती है। सु.
(See-chorapushpi ) रत्ना० । नि० १५ अ०। अवतुत avakshuta-हिं० वि० [सं०] जिस , अवाक् पुप्पो घृतम् avakpushpi.ghri. |
tam पर छींक पड़ गई हो।
अवाक पुष्पादि घृतम् avāk-pus hpadiअवक्षेपण avakshepanu.हि. संज्ञा पु.,
ghritam [सं०] [वि. अवक्षिप्त ] (१) गिराव । अवाक पुण्यादि घृतम् avak-pushpyādiश्रधः पात | नीचे फेकना । (२) अाधुनिक !
ghritam , विज्ञान के अनुसार प्रकाश, तेज वा शब्द की ! -सं० क्ली. अचाक पुष्पी ( सौंफ), मधुरी, गति में उसके किसी पदार्थ में होकर जाने से ..
बला, दारुहल्दी, पृष्टपर्णी, गोखरू, बगद, गूलर वक्रता का होना ।
और पीपल वृत की कोंपल प्रत्येक २-२ पल, श्वक्षेपः avakshipuh-सं० क्ली० (१): इनका क्वाथ, पीपर, पीपरामूल, मिर्च, देवदारु,
(Astorion.) । (२) ( It of dep. i कुटज, सेमल का फूल, चंदन, ब्राह्मी, केशर, ressing. )
कायफल, चित्रक, नागरमोथा, फूलप्रियंगू, अवक्षेपणो awalkshepani-सं० स्त्रा. वल्गा, अतीस, शालपर्णी, कमल केशर, मजीठ, अमल- लगाम । हे. चं० ।
तास, बेल गिरी, मोचरस, सोनापाठा, प्रत्येक अवक्षेपित avakshepita-हिं० वि० निम्नस्थित, १-१ तो. इन्हें ४ प्रस्थ जल में क्वाथ करे
तलस्थित, अधःक्षेपित । तलस्थाई, तहनशीं । जब १ प्रस्थ शेष रहे तो सुनिषण्णक (कुरडू) अवाँ avān-हिं० संज्ञा पु० दे० श्रावा।।
और चांगेरी का रस २-२ प्रस्थ, गोघृत अवा ava-हि० विछुपा घास । (Girardinia- |
१ प्रस्थ मिश्रित कर पकाएँ। heterophylla. )
गुण-इसके सेवन से सन्निपातातिसार, प्रवाश्रवाइद रदिय्यह, aavaidan.radiyyah हिका, गुदभ्रश, श्रामजन्य रोग, शोथ, शूल,
-अ० कुस्वभाव, खराब आदत । बैड हैबिट्स गुदारोग, मूत्रावरोध, मूदवात, मन्दाग्नि, तथा ( Bad habits-)-इं० ।
अरुचि का नाश होता है।
For Private and Personal Use Only