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अश्रुप्रथि खात
प्रश्वकञ्चकी रक्षा
. (Lacrimal-gland ) यह ग्रंथि बादाम अश्लानह ashlāvah-हिं० मोरशिषा, मोरपंखी।
के बराबर होती है और अश्रुग्रंथि-खात में ( Actinopteris Diclotoma, Ber रहती है। गुहहे दम्इय्यह.-१० ।
_dd.) अश्रग्रंथि खात ashru.grantbi-kbāta अश्लाबस ashlābās-. कायफल, बटफस । -fogo (Lacrimal gland cavi.
(Myricu spida.) by.) नेत्र गुहा की छत ( नेत्रच्छदि फलक) अश्लियह, क्यात्त म ashliyah-kyatium | में कनपुटी की श्रोर एक गढ़ा होता है।
अश्लियह पातम ashliyah patan अश्रुछिद्र oshru-chhidra-हि. पु. ( Pun.
फि० चूका, चाङ्गरी । ( Rimex vesi. ctum lacrimale) अंकुर की शिखर
___carius. ) पर एक छिद्र होता है जिसका नाम अधुछिद्र है।
| अश्लिष्ट ashlishta-हिं० वि० [सं०] रखेषइस छिद्र में से ही होकर अशु आँखों से नासिका
शून्य | असंबद्ध | अस गत । में जाया करते हैं।
अश्लेष ashlesha-हिं० १० श्लेष रहित, प. अश्रुनलिका ashyimalika-हिं. स्त्री. ( Ln. criral duct.) अश्रुणाली।
गाय, असंख्य, अप्रीति, अश्लेषभिन्न, अपरिहास । अश्रुनालो ashrn-nali-सं० स्त्री. भगन्दर | अश्वः ashvah-toप'.
रोग । वै० निघ । See-Bhagandara. | अश्व ashva-हिं. सज्ञा पु. gia: ashrn-patah pogo
धोटक, घोड़ा, हय, तुरंग, वाजि--हिं० । कोडा अपात ashru-pā ta-हिं० संज्ञा पु० ) -०, हिं० । अस्प-फा० । A horse (Equur
(.)घोड़े का एक अशुभ लक्षण विशेष । यह | scaballus, linn. ) चि ( वरी, पावर्त) घोड़े की जाख के नीचेके गुण-घोड़े का मांस उप्ण, वासनाशक, बल. स्थान में होता है। यह अत्यन्त भयावह तथा
कारक हलका तथा अधिक सेवन करनेसे पित तथा स्वामी के कुल का घातक है। जयद०३०॥
दाह जनक होता है । रा०नि०५० १७ । जब (२) आँसू गिराना । रुदन । रोना।
रस युक्र, अग्निवद्धक, कक तथा पित्त कारक, अश्रुप्रणाली ashru-prunali-सं० पु०, हिं०
वातनाशक, वृहण, बल्य, चदु के लिए हितका. wo ( Naso-lacrimal Duct. )
रक, हलका और मधुर है । भा०पू० । घोड़े की भाँसुओं की नाली । वनात् दम्हय्यह-अ०।
सवारी वातको प्रकुपित करता, अंगों को स्थिरता अभुवाहिनी ashru.vahini-सं० स्त्री० (La
प्रदान करता, बल तथा अग्निवाई है। ____erimal cunnal.) अनलिका ।
राज० । देखो-याजि । अश्रुश्रीन ashru-shrota-हिं० पु. ( Lacri
प्रश्वक: ashvakah-सं० पु. (A spa. mal Duct.) अश्रप्रणाली।
mov ) कुलग पक्षी । चिढ़ा । बै० निध। अश iashrusha-१० दरियाई खरगोश ।। (A sea rabbit. )
See-kuliigah. प्रश्रयस्थि ashrvasthi-सं०हिनी. यह नाली | अश्वकञ्च की रस: ashva-kanchukira.
जैसी एक अस्थि है; आँख से अश्रु इसी अस्थि में sah-सं० प. घोडाघोजी रस । योग तथा रहने वाली एक थैली में होकर नासिका के भीतर निर्माणु-विधि-शुद्ध पारद, विष, गन्धक, पहुँचते हैं । अश्रु श्रॉसे सम्बन्ध रखने के कारण इस हरतान, सोहागा, सोंठ, मिर्च, पीपल, राब अस्थि का नाम अवस्थि पड़ा है। यह अस्थि जमालगोटा के बीज, हर, बहेडा, भामer, काग़ज़ जैसी पतली और बहुत कोमल होती है। प्रत्येक तुल्य भागलें । इमको चूर्ण कर मागरे लैक्रिमल बोन (Lacrimal bone)-t०।। के रसमें खरल कर उदद प्रमाण गोलियाँ बनाएँ। भजम दम् ई-ऋ०। उस्तनाँने भरकी-फा०।। यह प्रत्येक रोगोंको दूर करता है। जिस नित ोध
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