Book Title: Aayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 826
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वपाल हॉर्सवीड ( Horse-weed ), नॉवरूट प्रदाह (Acute cystitis ), वृकश्मरी (Kaobroot)-201 (Renal calculi), जलोदर (Dr. उश्वल, बैल, खश्बुल बल, हनु ल.. opsy), श्वेत प्रदर, आमवात, प्रजीण, श्वास जज र-अ.। संगबीख, ग्याहे भस्म-फा०। और किसी किसी हृद्रोग में वर्तते हैं। परभरजड़ी-3.1 ___ यद्यपि सिवा इसके कि सूक्ष्म मात्रा में यह तुलसी वर्ग स्थानिक संकोचक तथा अधिक मात्रा (N. 0. Lubiutece ) पित्तनिस्सारक विरेचन है, इसके इन्द्रिय व्यापा. नोट ऑफिशल (Not official) रिक क्रिया के विषय में क्रियात्मक रूप से कुछ उत्पत्ति-स्थान-उत्तरी अमरीका । भी ज्ञात नहीं; तथापि अमरीका में इसका अनेक रोगों में उपयोग करते हैं। वानस्पतिक-विवरण-इस वनस्पति का काण्ड सीधा लगभग ४ इन्च के लम्बा होता है हठीले पूयमेह, अश्मरी तथा वस्तिप्रवाह में जिसपर छोटी छोटी प्रथिमय विपम शाखाएं म्य विषयक श्लैष्मिक कलाओं के लिए यह होती है। कांड पर बहुत से उथले चिह्न होते अवसादक है और अर्श वा गुदाक्षेप में मुल्यहै। यह अत्यन्त कठिन होता है । इसका वहिः वान सिद्ध हो चुका है। श्राशेपहर रूप से कुक्कुर कास, (Ohorea) स्था हृदय की पण' धूसर श्वेत तथा अन्तः श्वेत या सफेदी मायल होता है। त्वचा बहुत पतली, जई धड़कन में इसका उपयोग किया जाता है। असंख्य होती जो सरलतापूर्वक टूट जाती हैं। अश्वदंष्ट्रक: ashvadanshtrakah-सं० पु०(१) गोहर । गोखरू-हिं । ( Tribगंध-लगभग कुछ नहीं, स्वाद-कटु तथा ulus terrestris, Linn.) बनिय० । मूर्धाजनक। (२) हिंस्र जन्तु विशेष । सु. । रासायनिक संगठन-इसमें राल ( Re अश्वदंष्ट्रा ashvardanshra-सं० स्त्री० sin), कपायिन (Tanujn), श्वेतसार, गोक्षुर, गोखरू । (Tribulus terrestris, लुभाब और मोम होते हैं। Linm.) भा० पू०१ भा०। कार्य-अवसादक, प्राक्षेपशासक, संकोचक अश्वनाला ashvanālā-सं० स्त्री० ब्रह्मसर्प और बल्य । नामक सर्व विशेष | त्रि०। (A serpentमात्रा-१५ से ६० ग्रेन ( ७॥ से ३० रत्ती ! named Brab mat. ) अर्थात् १ से ४ ग्राम)। अश्वनाशः,-कः,-न: ashvanashah-kah. औषध-निर्माण-टिकचूरा कोलिनमोनी Ti. ! nah-सं० पु. श्वेत करवीर | सफ़ेद कनेर netula collinsone) ले० । अश्व -हि०। (Nerium oloruly ( The सृणासव-हिं । तबक्रीन अश्युल नल-श्रा ___white var. of-) रा०नि० २०१०। निर्माण-विधि-कोलिनसोनिया की जड़ कुचलो | अश्वपर्णिका:--णी ashvapa1nika, rniहुई एक भाग, मद्यसार (६० ) १० भाग | सं० पु. भूतकेशीलता । भूतकेश-हिं० । श्वेत "मेसीरेशन की विधि से टिंकचर बना लें। दूर्वा-सं० । ( Corydalis govon मात्रा-३० से १२० बूंद (मिनिम) । इसका iana.) एक फ्ल्युइड ऐक्सट्रक्ट (तरल सस्व ) भी | अश्वपाल: ashvapilab-सं० पुल होता है जिसकी मात्रा ११ से ६० मिनिम • श्वपाल ashva pāla-हि. संज्ञा ॥ अश्व रक्षक, अश्वसेवक, साईस । ( Agroप्रभाव तथा उपयोग-इसको उग्र वस्तिः । om.) For Private and Personal Use Only

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