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अष्टविधानम्
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अष्टाङ्गवैद्यकम् भक ( बहमन श्वेत ), ऋद्धि (चिड़िया कंद)। __ योग-गुग्गुल, निम्न पत्र, वचा, कुष्ठ, हरड़,
और वृद्धि (पंजा सालअमिश्री)। ! ___ यव, श्वेत सर्षप इनमें घृत मिलाकर धूप देने से अष्टविधानम् ashta-vidhanman-संग ज्वर नष्ट होता है । च० द. !
कलो. पाऽ प्रकार के आहार द्रव्य, जैसे (.)! अष्टाङ्ग मङ्गल घृतम् shrangamangal. चळ, ( २) चोष्य, (३) लेय, (४) पेय, ghritam--लं. कली० बच, मण्डूकपर्णी, : (१) खाद्य, (६) भोज्य, (७) भक्ष्य तथा शंखपुष्पी, ब्राह्मी, हुरहुर, श्वेतगुआ शतावरी, (3) निष्पेय रूप भोजन द्रव्य ।
गिलोय प्रत्येक ४-४ तो०, घृत ६४ तो०, दुग्ध अष्टक्षारः ashra-ks 'tirli-सं० पु. श्रा
२५६ तो. उक्र प्रोषधियों का कल्क बना धृत दूध ! आऽ प्राणियों के दूध | वे निम्न हैं- ।
पकाकर सिद्ध करें। (१) गोदुग्ध, (२) बकरी का दूध, (३)। टनी का दूध, (४) भेड़ का दूध, (५) भैंस |
गुण-इसके सेवन से धृति, स्मृति की वृद्धि का दूध, (६) घोड़ी का दूध, (७) स्त्री का |
होती है। वंग० से० सं० रसा० अ०1. दूध और (८) हाथी का दूध ।
अष्टाङ्गयोगः ashranga-yogah-सं. पु. "गन्यमा तथा चाष्ट्रमाविक माहिषं च यत् । योग विशेष । यथा-कट फल ( कायफल ), अरवायाश्चैव नारियश्च करेणूनां च यत्पयः ॥" | पोकर, झंगो, व्योप (त्रिकटु ), यास (जवासा) सु० सू० अ० ४५।
और कारची। संग्रहः । अष्टा ashranga-हिं० संज्ञा प.
अष्टाङ्ग रसः ashranga-rasah-सं० पु. अष्टाङ्गम् ashtangam-सं० क्ली०
प्रशेऽधिकारोक रस विशेष । लोहकिट्ट(मगदूर ) [वि. अष्टांगो ](1) आयुर्वेद के पाउ विभाग। और फलत्रय (त्रिफला ) १२० सा० सं००।
(क ) शल्य, शालाक्य, कायचिकित्सा, भूत देखो---अष्टाक्षरसः। विद्या, कौमारभृत्य, अगदतन्त्र, रसायनतंत्र और अष्टार लवणम् ashtanga-lavanam-सं० वाजीकरण।
कली० काला नमक भा०, जीरा १. भा०, (ख) काय चिकित्सो, बालचिकित्सा, ग्रह
वृक्षाम्ल (अमसूल) १ भा०, अम्लवेत १ भाग, चिकित्सा, ऊध्वांग चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, !
तज प्राधा भा०, इलायची प्राधा भा०, मिर्च दंष्ट्र चिकित्सा, जरा चिकित्सा और वाजीकरण ये
प्राधा भा०, मिश्री १ भा० ले चूर्ण प्रस्तुत करें। आयुर्वेद के पाठ अंग हैं। वा० सू० १ अ०।
गुण-यह अग्नि को दीपन करता और (ग) द्रव्याभिधान, गदनिश्चय, शत्य, काय,
कफज मदात्यय रोग को दूर करता है। वंग से० भूत निग्रह, विष निग्रह, रसायन और बाल
सं० मदाचि० । चर० मदात्यय-चि०। जीरा, चिकित्सा । वैद्यकम् ।
काला जीरा, वृक्षाम्ल (अमसल) और महाद्रक (२) शरीर के आठ अंग, जानु पद, हाथ, (स्थूल का वन श्रादक )। र० सा० सं० । उर, शिर, वचन दृष्टि, बुद्धि जिनसे प्रणाम करने
सौवर्चल कृष्णजीरकाम्लवेतसाम्ल लोणिकानां । का विधान है।
प्र०चूण समं स्वगेलामरिचानां प्रत्येकम भागः। वि० [सं०] ) पाठ अवयववाला । (२): शर्कराया भागैक एकत्र मिश्रयेत् । च० द. अठपहल ।
मदा०चि। अष्टाङ्ग घृतम् ashravgaghritam-स० अष्टाङ्ग वैद्यकम् as branga-validyakam क्ली० यह एक वाजीकरण घृत है।
-सं० क्लो० शालाक्य, काय, भूत, अगद,बाल, अष्टात धूपः ashringa-dhupah--सं. विष, बाजीकरण और रसायन इन्हें अष्टांग वैद्यक पु यह धूप ज्वरनाशक है।
कहते हैं। १००
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