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অথ।
अश्वतृणमः
।
छर्दि।।
.
. ज्वर पाने से पहिले पीपल की दातीन करना । अश्वत्थभित्,-भेदः ashvattha-bhit,-bh. ज्वर को और दाँतों से खून प्राने को रोकता है।। dah-सं०० नन्दी वृक्ष । वालिया पीपर,
- पीपल की लकड़ी का प्याला बनाकर उस | . तून-हिं० । भा० पू०१ मा० वादिव० । प्याले में रात्रिको पामी भर रखें और सवेरे उस | .: (Cedrela. toona.) . . . पानी को पिएँ । इससे मस्तिष्क शीतल रहता है, ! अश्वत्थमर ashvatthamar कना० अश्वस्थ । . वीर्य गाढ़ा होता है और स्वचा के रोग दूर हो जाते पीपल का पेड़ । ( Ficus religiosa.)
है। क प्याले में पानी रखने से उसके स्वाद में । अश्वत्थ वल्कलादि यांग: ashvattha-vs., अन्तर भाजाता है। पानी में पीपल की लकड़ी kalatli-yogab-सं०पू० पीपल की सूखी : का. असा पूर्व स्वाद स्पष्ट मालूम पड़ता है। छाल जला कर उससे पानी बुझा कर पीने से इसमें कुछ समय पर्यन्त दूध रख कर पीने से | प्रवल वमन का नाश होता है। वृ०नि० २० बहुत लाभ होता है। . बहुसपे सर्प-चिकित्सक इसकी कनिठा अंगुली
के इतनी मोटी लकड़ीके एक सिरेको गोल बनाकर .aladi-loub-सं०० पीपल वृक्ष की छाल, :: एवं घिसकर चिकनाकर ऐसी दो लकड़ियाँको सर्पः .. सोंठ, मिर्च, पीपल और मण्डूर इनके चूर्ण को - : दष्ट रोगी के दोनों कानों में 1-1 लकड़ी प्रविष्ट गुड़ के साथ सेवन करने से सय रोग का नाश
कर उससे तरह तरह की बातें पूछ कर विष दूर होता है । वृ०नि० र०क्षय चि०।करने का ढोंग करते हैं। परमात्मा जाने इसका अश्वत्थ सन्निमा ashrattlia-sannibha-सं.
क्या प्रभाव होता है ! (लेखक). , ... स्त्री० देखो-अश्वत्था । .... पीपख की सूखी लकड़ी और पत्र को जलाकर | अश्वत्था,-थी ashvattha,-ttbi-सं. स्त्री०
चार-निर्माण-विधि द्वारा इसका क्षार प्रस्तुत करें।। (१)मुद्र अश्वत्थ वृक्ष; गय अश्वत्थ-बं० । .. प्रयोग-आध पाव पानी में मा० इस बार रा०नि० २०११ (२)श्रीवली वृक्ष I ( See को मिलाकर इससे दिन में दोबार कोढ़ के जहनों -shirivalli) रा०नि० ३०८ (३)सीकाको धोने से बे बहुत शीघ्र अच्छे हो जाते हैं। काई। शीतला।
.. ....... इसके निरन्तर प्रयोग से प्राचीन से प्राचीन कोद ! अश्वत्थादि प्रक्षालनम् ashvatthidi.prakएवं फुलबरी (श्चित्र) आदि रोग दूर हो जाते हैं। shilanm-सं० क्ली.. पीपल, ...पिलइससे उपदेश में भी लाभ होता है।
खन, गूलर, बढ़ और बेंत के क्वाथ से धोने से अश्वत्थकम् ashvatthakam-सं० क्लीक घाव, सूजन और उपदंश का नाश होता है।
मल्लिका पुष्पदल । मलिका फुलेर पापड़ी-ब०।। अश्वस्थिका,-था ashvatthika-tthi-सं०
(Sce-Mallika pushpa. )वै निधः।। स्त्री० बुदपत्र अश्वत्थ वृक्ष । गया अश्वत्थ-बं०। अश्वत्थ पत्र योग ashvattha-patra-yo.
पिप्ली-हिं० । अश्वत्थी-मह० । हेनरलि-का०। ga-सं०० पीपल के पत्तों के अग्रभाग हा
संस्कन पर्याव-लघुपत्री, पवित्रा, हुस्व ... रस १ भाग, बोल : भाग, शहद १२ भाग मिला | . पत्रिका, पिप्पलीका और वनस्था। ..
कर पीने से रक्रराव और हृदयस्थ संचित रक- । गुण-मधुर, कसेली, रनपिसनाशक, विषान विकार दूर होता है । वृ०० २० भा० ५ र० ! दाहनाशक तथा गर्भिणी स्त्रियों के लिए हितकारी पिस। ..
है। रा०नि० २०११ । अश्वत्थफनका,-ला ashvattha-phala अश्वतृणम्ashvatrinain-सं.क्लो. पाषाण मून्त्री, ka-a-सं० स्त्री० हवा हाउबेर-हि।
घोड़ा घास-हिं० । कोलिनसोनिया (Collin. हयुष वृत्त-वं। लघु शेरणी-मह०(Juni- sonia.), कॉ० कैनेडेम्सिस (C, Canaperi fructus. ) भा० पू० । भा०। densis)-ले० । टोन रूट (Stone root)
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