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अशुंडार
अशोक
अशुङ्कार ashunkār:-कना. अशोक-हिं०, बं०!!
(Saraca indica.) अचिः ashuchih-सं०नि० अशचि ashuchi-हिं० वि० [संज्ञा अशौच1
(१) अशुद्ध, अपवित्र, अशौची । (1) गंदा । मैला । ( Impure, foul, unclcen )। -हिं० संज्ञा स्त्रो० अपवित्रता, अशुद्धता ( Im
purity.)। अशुतायर aashuttail-अ० घाँसला, खांथा । नेस्ट
(Nest)-इं०1 अशुद्ध ashuddha--हिं० वि० [सं०] [संज्ञा |
अशुद्धता, अशुद्धि ] (१)बिना शोधा हुअा।। बिना साफ किया हुआ । असंस्कृत । जैसे अशुन्छ ।
पारा ।। २) अपवित्र । अशूक ashuka-नेपा० ल्हाला-भोट०, लेप० !
सुर्च, सुट्स, काला-विस् , सर्दकर, धुचुक, सर्चाचुक, चुमा-पं० । हिप्पोफी सिलिसिफोलिया (Hippophie silicifolia, Don. ) -ले०।
(N.O. Eleagnacece.) उत्पत्ति-स्थानशीतोष्ण हिमालय, जम्बू से सिक्किम पर्यन्त । प्रयोगांश-फल ।
उपयोग-इसका फल फुप्फुस रोगों में उप- | योग किया जाता है ( पञ्जाब में)। ई० मे.
प्लां । प्रशूकजः, कः asbika.ja h, ka.h-6. प.
मुण्डयालि, निःशूक शालिधान्य 1 (See-mu
nd ashali) रा०नि० ५० १६ । अशुष्कतोयमलः ashushka toyamalah --स. ए. समुद्रफेन | Cuttle-fish
bone (के. नि.)। अशृत ashrita-सं० क्ली० अपक, करवा अशोक: ashokath-स. प. अशोक ashoka-हिं सशाप अशोक,
असोक, अशोक बीरो, अशोगी-हिं । सैरेका इण्डिका (Saraca Indica, Linn.), Daftar Har (Jonesia asoka, Roab.-ले. ।दी अशोका री ( The Aso
ka troe )-। जोनिसिया प्रस्जोगम (Jonesia as jogam.)-फ्रां ।
सस्कृत पर्याय - अलमाप्रियः, वीतशोकः (शब्द० मा०), शोकनाशः, विशोकः, पशुखामः वजुलः, मधुपुष्पः, अपशोकः, कलिः, घेलिक, रक्रपलयः, चित्रः, विचित्रः कर्णपूरः, दोहली, ताम्रपलवः, रोगितरुः, हेमपुष्पः,घामतिः, यातना, पिण्डीपुष्पः, नटः, रामा, पल्लवन :, (रा), कान्तावि. दोहदः (त्रि), चक्रगुच्छा (श), ककेलिः, पिण्डपुष्पा, गंधपुष्पः, रक पहषका, वामांनियातनः, रागपल्लवः, केलिकः, सुभगः, मोहलीक, पल्लवद् म, राम । अशो( सो)क गाय, अशोक फुलेर गाछ-ब' । असोक-हिं०, १०, बस्त्र०, उडि०, कना०, ०। अशोक-मह। देशी पील फुलनो, प्राशुपालो, आयपाल (खा) -गु० । आसोपालव, प्रासापाल-हिं०। होण्या -सिंह। असोगम-मल०, ता० । असोकडा, केत्रिमर-कना० । जासुदी-बम्ब० । थागबो-बर० । असेक- कटक, मह । म्यकर--गु०।
शिम्बो वर्ग (N.O. Leguminosle,-cer.)
उत्पत्ति स्थान-अशोक हिन्दुओं का एक पवित्र वृक्ष है । यह पूर्वी बंगाल की, जो सम्भवतः इसका प्रादि निवासस्थान है, साकों के इधर उधर बाहुल्यता से पाया जाता है । दक्षिण भारत, अराकान और टेनासरिम में यह अधि. कता के साथ उत्पन्न होता है। संयुक्रप्रांत में कुमायूँ के समीप २००० फीट उब इसके वृष होते हैं । सुन्दर पुष्पों के लिए इसको बहुत से स्थानों में लगाते हैं।
वानस्पतिक वणन-अशोक प्रायः हो प्रकार का देखा जाता है। नीचे इनमें से प्रत्येक का पृथक् धक् वर्णन किया जाता है-.
(.) यह एक इतस्ततः विस्तृत बहुशाखासमन्वित उत्सम छाया तरु है । साधारण वृन्त के दोनों पार्श्व में १.६ जोड़े पत्र होते हैं। पत्र रामफल के समान प्रायः १८.३० अंगुल लम्बे सामान्य चौड़े, तरुणावस्था में रञ्जित एवं लम्बित
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