Book Title: Aayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 800
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनुकारी हुई वायु के वस्तिगत शुक्र के साथ सूत्रको प्रथवा पित्त के साथ कफ को सुखाने से क्रमशः गाय के पित्त में गोरोचन के समान उत्पन्न हो जाती है । आयुर्वेद में इसके वातज, पित्तज कफज और शुक्रज ये चार भेद माने गए हैं । ल ७४८ चरक, सुश्रुत, वाग्भट प्रभृति सभी प्राचीन श्रायुर्वेदीय ग्रंथों में जहाँ भी अश्मरी का वर्णन हुआ है वहाँ उम्र शब्द का प्रयोग केवल वस्तिगत अश्मरी के लिए किया गया है । परन्तु यह शब्द उतने संकुचित अर्थों में नहीं लिया जाता । प्राचीन शास्त्रकारों को और स्थानों में बनने वाली अश्मरियों का ज्ञान था या नहीं अथवा पूर्व पुरुषों में और स्थानों में प्रश्नरियाँका निर्माण होता था वा नहीं ? इसके संबंध में यहाँ कुछ विशेष न कह कर हम केवल इतना ही कहना यथेष्ट समझते हैं कि इस शब्द का प्रयोग श्रव उतने संकुचित श्रथ में नहीं होता, वरनू किसी भी अध्ययन की प्रणाली वा मार्ग अथवा स्वयं उस ग्रंथि में बनने वाली किसी प्रकार की पथरी को अब हम अश्मरी कह सकते हैं । यद्यपि इन सबके निदान, सम्प्राप्ति लक्षण तथा चिकित्सा प्रमृति का, चिकित्सा प्रणालीत्रय के अनुसार अपने अपने स्थल पर सविस्तार वर्णन किया जाएगा; तभी उन सब भेदों का यहाँ संक्षिप्त परिचय करा देना अप्रासङ्गिक न होगा नोट- डॉक्टरी शब्द कैल्क्युलस एका अर्थ खद्रिका है। परंतु डॉक्टरीकी परिभाषा में अश्मरी को कहते हैं। प्राचीन पाश्चात्य शास्त्रकार भी इसका प्रयोग केवल वृक्क एवं वस्तिगत अश्मरी के लिए ही करते थे। परन्तु अब इससे स्यापक अर्थ लिया जाता है। अश्मरी के मुख्य भेद निम्न हैं I (१) वस्त्यश्मरी -- श्रायुर्वेदिक शास्त्रों में इसका वर्णन अश्मरी शब्द के अन्तर्गत हुआ है इसका एक भेद काश्मरी है: परन्तु यह श्रायुर्वेदोस्त “झुकाश्मरी” वस्ति में नहीं हो सकती, नू इसका निर्माण बीजकोष में होता है। 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरसरी पर्याय-- सिप्टोलिथ ( (ystolith ), स्टोन इन दी ब्लैडर ( Stone, in the bladder ) - ई। सातुल् मसान - अ० । मसाना की पथरी - 30 ( २ ) शुक्राश्मरी, (शुक्राशय स्थित श्मरी ) ( Calculus of vesiculus seminales )— ( ३ ) शिश्रायत्वगश्मरी-शिग्नाम स्वचा अर्थात् शिश्न की घूँघट में बनने वाली अश्मरी 1 ( Calenlus of prepa uce ) (४) प्रोस्टेट ग्रंथि -स्थित अश्मरी, श्रष्ठीलागत अश्मरी - ( Prostatic calcali) प्रोस्टेट ग्रंथि वा प्रणाली में बनने वाली पथरी । हाल गुद्द कुंद्रा मियह श्र० । (५) वृक्काश्मरी, वृक्क की पथरी - रेनल कैलक्युलाइ ( Renal calculi ), स्टोन इम दी किडनी Stone in the kidney), नेफ्रोलिथ ( Nephrolith ) इं० | हातुल् कुकुल्विये ० | गुर्दा की पथरी-३०। वृक्काश्मरी के होने पर रोगी की पीछे की ओर दाहिनी या बाईं तरफ बेदना रहती है। हिलने पर यह वेदना और तीव्र होती है। जब यह अश्मरी वृक्क में से निकलकर मूत्र प्रणाली ( गविनियु) में घड़ जाती है अथवा उनमें जब गति होती है तब चूकभूल ( Renal colic) के उत्कट लक्षण पैदा हो जाते हैं । इनके मूत्रप्रणाली में थाकर फंस जाने ही को " मूत्राश्मरी" कहते हैं । (६) मूत्राश्मरी - युरिनरी कैलक्युलाई Urinary calculi, युरोलिथ Urolith, स्टोन इन दी युरिनरी पैसेज stone.cin the urinary passage-३० | हसात बौलिय्याह - अ० । पेशाब का संगरेज़ह - ३० । इसके दो मेद हैं, यथा--- For Private and Personal Use Only > (क) मूत्रप्रणालीस्थ अश्मरी, गविनियुस्थित अश्मरी - ( Calculus of ureter)

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