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अर्क
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जल में परिणत होने लगा । श्रार्थो का यह ज्ञान अत्यन्त प्राचीन हैं। अस्तु, इस विषय में कईएक स्वतन्त्र ग्रंथ भी आज हमें उपलब्ध होते हैं ।
इसका बड़ा रस्म ईरानी हकीमों और सबसे अधिक पश्चात् कालीन वैद्यों तथा भारतीय हकीमों में पाया जाता I
हेतु ( १ ) श्रीषधियों के सूक्ष्म प्रभाव
श्रंश का पृथक करना । (२) श्रोपधियों के बड़े परिमाण के प्रभाव को दोबारा तिबारा स्रवण करने से संक्षेप मात्रा में लाना और ( ३ ) उपयोग की सुविधा के लिए। ये ही कारण अर्क स्रवण करने के मूलाधार कहे जा सकते हैं; गोया अर्क एक प्रकारका सार हैं ।
नोट- अर्क कैंचते समय सौंफ़, अजवायन आदि के उड़नशील तैल जलके उष्ण ( ३०० श) वाष्पों के साथ वापीभूत हो जाते हैं।
यह एक अत्यन्त गवेषणात्मक विषय हैं कि आया जो द्रव्य अर्क चुश्राने में व्यवहन होते हैं; उन सबके प्रभात्रात्मक श्रंश परिस्रुत में श्रा जाते हैं या नहीं ? श्रायुर्वेदीय ग्रर्कग्रंथों एवं यूनानी क़राबादोनों में श्रर्क के बहुसंख्यक यांग मिलेंगे, जिनमें श्रमूल्य प्रभाव का होना बतलाया गया है । परन्तु परीक्षा काल में प्रत्येक अर्क से श्रभीष्ट लाभ नहीं प्राप्त होता । बहुत से तो ऐसे हैं। जिनमें सिवा समय नष्ट करने के ओर कोई ! परिणाम नहीं, श्रस्तु, इस विषय में अभी काफ़ी अनुसंधान करने की आवश्यकता है। आवश्यकता होने एवं अवसर मिलने पर गवेपणापूर्ण तथा अपने अनुभवात्मक लेख द्वारा कभी इस विषय पर उचित प्रकाश डालने का प्रयत्न किया जाएगा ।
अवयव - श्रर्क के योगों को ध्यानपूर्वक देखने से यह ज्ञात होता है कि उनमें प्रायः निम्न लिखित अवयवही मिश्रित रूप में पाए जाते हैं, यथा --
( १ ) बीज, ( २ ) पत्र, (३) गिरी ( मींगी ), ( १ ) खनिज ( पाषाण आदि ), ( ६ ) कस्तूरी तथा अम्बर, (७) पुप, (5) स्व ( ३ ) काष्ट, (१०) जड़, ( ११ ) मांस
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अक
रस (यनी), (१२) माउजुब्न ( दूध का फाड़ा हुआ पानी ), ( १३ ) फल तथा ( १४ ) निर्यासवत् पदार्थ |
औषध एवं जल की मात्रा - सामान्य बाजारु अत्तार छटाँक भर औषध में दो सेर तक र्क प्रस्तुत कर लेते हैं। यह अत्यंत निर्बल होता है । अस्तु स पंद्रह तोले से १ सेर अर्क निकालना श्रेष्ठतर है
यदि पाव भर श्रीषध हो और दो सेर अर्क निकालना हो, तो लगभग ४ सेर पानी में औषध भिगोएँ, तत्र दो सेर अर्क निकलेगा ।
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यदि श्र में दुग्ध भी सम्मिलित हो तो. उसको प्रातःकाल चक्रं निकालने के समय मिलाना चाहिए |
यदि अर्क के योग में कस्तूरी, केशर तथा श्रंवर श्रादि के समान सुगंधित द्रव्य हो, तो उनको पोटली में बाँध कर ( वारुणी यन्त्र द्वारा श्रर्क्र चुमाने की दशा में ) टोंटी के नीचे इस प्रकार लटकाएँ कि ' उस पर बूंद बूंद पड़े और फिर उससे पककर वर्तन में एकत्रित हो । परन्तु यदि भभका द्वारा अर्क चुधाना हो तो मैचे के सुख में रखना चाहिए।
यदि श्र में गिरियाँ पड़ी हो तो उनका शीर निकाल कर अर्थात् उनको पानी में पीस छान कर डालना चाहिए ।
अर्क के समाप्त होने के लक्षण
इस बात का जानना अत्यन्त कठिन है कि समाप्त हो गया या नहीं । श्रस्तु इस वात के जानने के लिए कुछ कौड़ियाँ ( कपर्दिकाएँ ) डेगमें डाल देनी चाहिएँ । जिस समय जल समाप्त होने के समीप होगा, ध्यान देकर श्रवण करने से कौड़ियों का शब्द ज्ञात होगा । उस समय तत्क्षण अग्नि देना बन्द करदे |
इसकी एक परीक्षा यह भी है कि जब श्र समाप्त होने को होता है तब वह अत्यल्प और विलम्व से आता और जल की ध्वनि कम हो जाती है।
नोट - श्रकं सवण विधान के लिए व
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