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अगोटा
प्रोटा
(क) प्रोटीनम् बोलियन् (Ergotimum Bomjean )--यह एक जलीय राभधृपर एक्सट्रक्ट है जो ऐल कोहल से शुद्ध किया जाता है। इसका १ भाग ५ या ६ भाग श्रर्गट के बराबर होता है। मात्रा-2 से ४, ग्रेन ।
(ख) अगोटीनम् बॉम्बेलोन फ्लुइडम् ( Ergotinum Bonnbeion Flu idum )-यह एक धयरामकृष्णा वर्णीय द्रव है जिसको ३० मिनिम की मात्रा में स्वस्थ सूचीवेध द्वारा प्रयुक्र किया करते हैं।
(ग) प्रोटोनम् डेअल फ्लुइडम् (Ergotinum Deuzel Flulum )यह एक स्वच्छ किया हुअा रस क्रिया (खुलासा, रुटब) है जिसको ३ से १० ग्रेन की मात्रा में
(घ) अर्गोटीनम् कोलमैन फ्लुइडम् | (Ergotinumi Kohlmail Fiuidum )-यह भी श्यामाभधूसर द्रव है जो जल के साथ संयुक्क हो जाता है। मात्रा-६. से ७५ ग्रेन।
(१५) टायरमीन (Tyramine ), | हाइड्रॉक्सीफेनिलीथिलामीन (P-Hydroxy. ! phenylethylamine ) यह अर्गद फोट में वर्तमान होता है और इसे सन्धानक्रिया विधि (Synthetically) द्वारा भी प्रस्तुत किया गया है। इसका प्रभाव एडीनेलीन (उप वृकसार ) के समान होता है । स्वगधोऽन्तःक्षेप द्वारा । ( ग्रेन की मात्रा में ) भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। यह सिस्टोजन (Systogen)| और युटेरामीन ( Uteramin ) नाम से भी प्रसिद्ध है।
(१६) इटीन ( Emutin -यह , एक तरल है, जिसमें टायरेमीन और प्रोटॉक्सीन : दोनों सम्मिलित होते हैं। त्वगधोऽन्तःक्षेप रूप से (10 मिनिम की मात्रा में और प्रान्तरिक रूप से ३० से ६० बूद 'मिनिम' की मात्रा में) इसका उपयोग होता है।
अगंट की फार्माकालाजी
अर्थात् अगट के प्रभाव (आन्तरिक प्रभाव ) डॉक्टर डिक्सन ( Daixon ) एवं डॉ. डेल (Dale ) ने अर्गट स्थित मुख्य प्रभावकारी सत्वों की ध्यानपूर्वक परीक्षा की जो इस कची औषध (Crude drug ) के प्रभाव पर यथेष्ट प्रकाश डालती है। जैसा कि द्विजिटेलिसके सम्बन्ध में कहा जाता है, इसका यह प्रभाव इसके विभिन्न सत्वों के सम्मिलित प्रभाव का परिणाम माना जा सकता है । (डिजिटेलिस के समान. अर्गट से भिन किए हए किसी भी सम्व का ऐसा विश्वस्त प्रभाव नहीं होता जैसा कि कच्ची औषध कांट, टिंचर या लिक्विड एक्सट्रक्ट अर्थात् तरल सच का)।
११) प्रोटॉक्सीन (Ergotoxine)वे पदार्थ जो प्रथम स्फेसीलिनिक एसिड (Sphin. celinic Acid) और स्फेसीलोॉक्सीन (Sphacclotoxin ) नाम मे अभिहित होते थे, उकलकलाइड (क्षारोद ) के अशुद्ध रूप थे । डिक्सन महोदय इसका प्रभाव-स्थल प्रान्तस्थ नाडी-गंड की खेलों को मानते हैं। उनके मतानुसार यह रक्तवाहि. नियों को बलपूर्वक प्रांचित करता है जिससे शरीरावयव एवं हस्तपाद में गैंग्रीन बन जाते हैं, और कुक्कुट की अरूणशिखा श्यामवर्ण में परिणत होकर पतित हो जाती है एवं यह गर्भान्वित जरायु के तन्तुओं का सबल श्राकुचन उत्पा करता है। शय्यागत रूप से अर्थात् रोगी पर यद्यपि इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं होता, सो भी यही इसका एक ऐसा प्रमावकारी सत्व है जिससे वास्तव में अर्गट को अमोघ कहा जा मकता है।
(२) टायरेमीन (Tyramine.)प्राणिज पदार्थ के पचनकात में अमिनी-एसिड द्वारा भी यह निर्मित किया जाता है। टायरोसीन
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