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भाव मेदक
भावमेरमा यह रोग जब अधिक बढ़ जाता है तब एक और यत श्रावस्यपूर्ण एवं शिथिन्न होती है, सिर के कान और नेन को नष्ट कर देता है।
घूमता है, मेत्र के सामने चिनगारियां प्रभृप्ति यूनानी वैद्यक के मत से शकीकह एक प्रकार उहती एप्टिगोचर होती हैं। ये बदण पूर्वरूप का शिरोशूल है जो साधारणतः प्राधे शिर में में होते हैं। अर्थात् शिर की वाम वा दक्षिण पार्श्व में होता
फिर इस प्रकार वेदना प्रारम्भ होतो है- है, किन्तु कभी सम्पूर्ण शिर में होता है ।
प्रथम कनपटी और भौहें। में मन्द मन्द वेदमा जैसा मुल्ला नफीस ने इसकी व्याख्या की
प्रारम्भ होकर उग्र रूप धारण करती जाती है। है। ऐसी दशा में इसकी शकीकह श्राम कहते
यहाँ तक कि कुछ काल पश्चात् अत्यन्त तीन हैं। निम्नलिखित डॉक्टरी नोट से भी इसकी
वेदना होने लगती है। ऐसा प्रतीत होता है सत्यता स्थापित होती है। इस बेदमा की विशेषता
गोया शिर विदीर्ण हुमा जाता हो । गति करने यह है कि यह साधारणतः परियाय रूप से
से वेदना की वृद्धि होती है । प्रायः तो शिर के अर्थात् दौरे के साथ हुआ करती है। इसके
एक ही पार्श्व में वेदना होती है। किन्तु किसी साथ सामान्यतः हल्लास एवं वमन विकार होते
किसी समय सम्पूर्ण शिर में वेदना होती है। तो है। जिस समय यह वेदना सम्पूर्ण शिर में होती
भी एक ओर तीन होती है। रोगी के लिए शन्न है उस समय इसको सुदाम् बै ज़ह (सम्पूर्ण
तथा प्रकाश भसद्ध होते है। उसकी कॉम्खों के शिर के वर्द) से पहिचानने में भ्रम हो जाया
सामने भुनगे वा चिनगारिया उड़ती सी प्रतीत करता है। इन दोनों में मुख्य भेद यह है-शकी
होती हैं। कर्णनाद होता, मुखमण्डल की विव. कह में शाटिकी धमनियों में स्पन्दन अधिक
संता, शरीर का कॉपना, नाड़ी की निजता, होती है और उनकी दबा लेने से वेदना शान्त
हल्लास ( मचली), उबकाइयो पाना प्रादि हो जाती है; किन्तु सुदामबै जाभू में ऐसा नहीं
लक्षण होकर अन्तत: एक ओर की कनपटी या होता।
भौंह में न्यथा टिक जाती है। दो-तीन बटे से टिक डोलरी ( Tic Douloureux)
लेकर साधारणतः २४ घंटे तक और यनि उम्र मर्थात् इसाबह ( भौंहों के दर्ष) को भी किसी।
हो तो कभी २-३ दिवस पर्यन्त रहकर अब शमन किसी डॉक्टरी उर्दू ग्रंथों में दर्दे शकीकह लिखा
होने लगती है तब रोगी को नींद आ जाती है। है। परन्तु यह ठीक नहीं।
जागृत होने पर वह सर्वथा स्वस्थ होता है और डॉक्टरी मत
फिर कुछ दिवस परचात्, पर सामान्यतः ३ या । - डॉक्टरों के मत से माइग्रीन एक प्रकार का सप्ताह बाद दर्द का वेग होता है। नौबती शिरःगूल है जो सामान्यतः माधे शिर में हुप्रा करता है। निदान-उनके मतानुसार यह
अर्थावभेदक की चिकित्सा .. प्रायः पैतृक होता और अधिकतर स्त्रियों को होना অথম ন দীঘী কা বাঘ বিহুৰে জৰ है। विशेषतः अधिक रजात्राव होने या अधिक शिरोरागान्तर्गत चिकित्सा का प्रवदम्वन करे। काल सक स्तम्यवान से यह हो जाता है। कभी कभी वायगोना भी इसका कारण होता है।
अवधिभेदके प्येषा यथा दोषाम्यवाकिया। विकार, थकावट व श्रम, उपवास एवं निर्व. खता, अजीर्ण, अनिद्रा, तीन प्रकाश, उम्र गंध,
(दा० उ०७०) मलेरिम द्वारा उप विषाहता, अति मैथुन, पृष्ठ अस्तु सिरस के मेज, जोमा की मह तथा म्याधि और मुख्यकर ष्टि दोष इत्यादि इसके | বিলাক না ল য় য়াং ভাই प्रोत्साहक एवं उत्पादक कारण हैं।
का नस्य अथवा कॉजी के साथ पिसे हुए पंवार लक्षण साधारणतः वेदभारम्भ से पूर्व तबी.। " बीजे कालेप हितकारी है। यथा
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