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अदूधावभेदक
अविमेदक शिरीष वोजापामार्गमलं नस्यं विडान्वितम्। (मिठाई) श्रादि सेवन न करे । क्यों कि अधिक स्थिसरसो वा लेपेतु प्रपुम्नाटाऽम्ल कल्कितः मांस तथा मिठाई के सेवन से वेग की वृद्धि होती
... :(वा० उ०२४ अ०)। है । जिस पदार्थ के सेवन से. वेगारम्भ होने की सुश्रनाचार्य के मत से नस्य कर्म आदि रूप | . . आशंका ही उसका कदापि व्यवहार न करें और प्रौपध, जांगलप्राय भोजन और दुग्ध एवं अन्न । . प्रत्येक प्रकार के भारी तथा श्राध्मानकारक के बने पदार्थ तथा घृत आदि केवल सूर्यावत में ! पाहार से परहेज करें। रोगी को चाहिए कि ही नहीं, प्रत्युत अर्धभेदक में भी प्रयोजनीय हैं । । भोजन करने से पूर्व एक घंटा तक सर्वथा श्रारामसे और स्नेह, स्वेद, शिराव्यधन (फसद खोलना )। लेटने की आदत डाले। इस बात का सर्वथा तथा अवपीड़नस्य और कर्णशूलोक दीपिकातैल | ध्यान रक्खें कि मलावरोध न हो। पाखाना साफ़ आदि में से जो उपयुक हो उसका म्यवहार !... हो जाया करे । इसलिए किसी मृदुरेचक औषध
का व्यवहार करें और कभी कभी (महीने में . शिरीष, मूलक ( मूली) तथा मदनफल । एक बार) ५-७ दिवस पर्यन्त निम्नयोग का इनका अवपीय नस्य देना अर्धावभेदक ! . व्यवहार करें। तथा सूर्यावत्त दोनों में हितकारक है । वच और
मैग्नेसियाई सल्फास २० ग्रेन, पिप्पली का अवपीरन करना इसमें लाभदायक क्वीनीनी सल्फास
२० प्रेन, है।, अथवा मुलेठी का बारीक चूर्ण कर उसमें
सिड सल्फ डिलं
५ मिनिम, मधु मिलाकर इसका अवपाद करें। मैंसिल
लाइक्वार स्ट्रिक्नीनी २ मिनिम, ...अथवा चन्नुन के चूण में शहद योजित कर इस
इन्फ्युजम ऑरेंशियाई (ऐड) १ श्राउंस । का भवपीइन करें। (सु० उ० २६ १०)
ऐसी एक-एक मात्रा औषध दिन में ३ बार ... ... .प्ररक्षित नस्य ....... काश्मीरी पत्र, करवीर पत्र, छोटी इलायची, काय
जब वेदना के वेग से पूर्व आँखों के सामने फल, नलिकनी, जौहर नवशादर और सफेद ।
चिनगारियों सी उड़ती दिखाई दे या कनपटी पर ': चन्दन । सबको समान भाग लेकर खूब : बारीक
सुरसुराइटं बोध हो या शिरोघूर्णनं वा शिर के चूर्ण: कर रखें। इस.का, नस्य लेने से ग्राधासीसी
एक पार्श्व पर सूपम सी वेदना हो तब दो तीन को लाभ होता है। ..... ...
दिवस पर्यन्त १० ग्रेन अमोनियम् ग्रोमाइड को . ....... डॉक्टरी चिकित्सा : :
किञ्चित् जल के साथ दिन में ३ बार व्यवहार रोग का मूल कारण, का पता लगाकर उसको करें। अथवा ३.६ दिन तक १५ ग्रेन कै शिल्यम दूर करने का प्रयरन करें और यति प्रधान कारण लैक्टेट धोड़े सोडावाटर में मिलाकर ऐसी एक ज्ञात न हो सके तो निम्न लिखित उपाय काम में एक मात्रा दिन में तीन चार बार दें। '
येग कालीन चिकित्सा रोगी को आदेश कर कि बह । संरक्षण सम्बन्धी नियमों का पालन करे और जब शिर में दर्द होने लगे तब रोगी को एक मध्य मी यन कर जीवन निर्वाह करे। .स्वच्छ अंधेरे कमरे में सुखपूर्वक लिटाए रखें। वहाँ
खलीई वाव में रहे। दैनिक वायु सेवनार्थ पर किसी प्रकार का शोर व गुल न होने दें। भ्रमण किया करे। अधिक श्रम एवं वैकल्यकारक / . . सेगी को कोई प्राहार न दें। यदि प्रामाशय कार्थी संधी चिता प्रादि से अपने को दूर रखें।। ' पार से पूर्ण हो तो कोई वामक यथा " ड्राम यथासम्भव अपने को प्रसका रखने का यत्न करें। थाइनम् इपिक क्वानी माउस जल में मिला'उष्ण व उत्तेजक आहार यथा -पोलाव, खर्मा, कर पिलाएँ जिसमें १-३ वर्मन प्राकर कोष्ठ शराम वा याब, चाय तथा कहवा और मिठास शुद्धि हो जाए और यदि प्रामाशय रिक हो तथ
स्थ्य
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