________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भद्धोंगी
भाष भेदक में ५ पहर तक हलकी चमें पकाएँ और इसके अर्धे तु मूनः सार्धायभेदकः । बराबर त्रिकटु का चूर्ण मिलाकर बारीक पीस ! पक्षात्कुप्यति मासाद्वा स्वमेव च शाम्यति । रख ले।
अति वृद्धस्तु नयनं श्रवणं वा विनाशयेत् ॥ मात्रा-२ रत्ती।
(पा० उ०२३०)
मर्थ-मस्तक के प्राधे भाग में जो शिरोगुण - यह अदांग वात और एकांग वात को !
विकार होता है, उसे अर्धावभेदक कहते हैं। यह नष्ट करता है । रस. यो० सो.।
रोग पन्द्रहवें दिन वा भास मास में कुपित होता अांगी arddhongi-हि. वि० [सं०] |
है और औषध के बिना अपने आप शान्त हो (1) पक्षाघाती प्रदीग-रोग-ग्रस्त । (One i
जाता है। अविभेदक प्रबल हो जाने पर नेत्र afflicted with the hemiplegia.)
वा कानों को मार देता है। राशोनजलम् arddhanshonajalam सुश्रुताचार्य भी ऐसा ही मानते हैं। परन्तु
-सं० क्ली० अाश हीन पक्व जल, प्राधा भाग माधव के विरुद्ध केवल एक बा दो दोषों से ही से कम पकाया हुआ जल । यह वात पित्त नाशक कुपित हुश्रा न मानकर तीनों दोषोंसे कुपित हुश्रा है। ग. नि० २०१४।
मानते हैं । यथाप्रालिगः arddhāligah-संप जल सर्प ।
यस्यात्तमाङ्गार्धमतोष जन्तोः (Aquatic serpent.) वैनिघ01
संभेद तोद भ्रम शूल जुष्टम् । अयिभेदकः arddhava bhedakah |
पक्षादशाहादथवाप्यकस्मा-सं.प .
त्तस्यार्धभेदं त्रितयाद् व्यवस्येत् ॥ अविभेवक ardhava-bhedaka
(सु. १० २१ म.) -हि० संज्ञा पु. ) माधवाचार्य के मत से एक प्रकार का परियाय से होने वाला शिरःशूल रुक्षाशमात्यध्यशन प्राग्वातावश्याय मैनः । जो सामान्यतः प्राधे शिर में, कभी कभी सम्पूर्ण
वेगसंधारणायास व्यायामैः कुपितोऽनिलः॥ शिर में हुआ करता है । इसमें जी मचलाता और
केघलः सकफोबाधं गृहीत्वा शिरसोघली । उबकाइयाँ पाती हैं और आँखों के सामने
मन्या भ्रशा कर्णाक्षि ललाटाधेऽतिवेदनाम॥ चिनगारिया सी उपती दृष्टिगोचर होती हैं इत्यादि। शखारणिनिभांकुर्यात तीनांसाऽर्धावभेदकः प्राधासीसी । अर्धभेदक, अधकपारी (ली)। नयनंघाथवा श्रोत्रमतिवृयो विनाशयेत् ॥ हेमिक्रेनिया ( Hemierania ), माइ.
(मा. नि.) ग्रीन Migraine, सिकहेडेक Sick he-| अर्थ--अस्यन्त रूखे पदार्थ खाने से अधिक adache, मेग्रिम Megrim, नर्वस हेडेक
भोजन करने से, भोजन पर भोजन करने से Nervous headache-० । माइग्रीन
पूर्व की वायु एवं बर्फ का सेवन करने Migraine-फ्रां । माइग्रेन Migrane से, अति मैथुन करने तथा मल मूत्राधिक -जर । शक्री कर, सुदाश् निस फ्री, सुदाम् | के वेगों को रोकने से, अधिक श्रम सथा व्यायाम ग़स यानी-१०। दर्दे नीम सर, दर्दे शक्रीकह , करने आदि कारणों से केवल वायु अथवा का दर्दे सर ग़स यानी-फा०, उ० । प्राधासीसी, संयुक्र वायु कुपित होकर श्राधे शिर को ग्रहण सर का दर्द-उ० । प्राध् कपालेर धरा-'.। कर मन्या नाड़ी, भौंह, कनपटी, कान, नेत्र और
आयुर्वेद के मत से मस्तक के प्राधे भाग में ललाट एक ओर के इन सभी अययों में कमी होने वाले शिरोविकार को अविभेदक कहते हैं । के काटने कीसी अथवा अरणी (जो मभ कर उनको इसका परियाय रूप से होना. मी स्वीकार अग्नि निकालने की लकड़ी है) के समान बीज है। यथा
___ पीड़ा उत्पन्न करता है उसको पर्धावभेवक कहते हैं,
For Private and Personal Use Only