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अर्कोटा
अगाटा
- वात या नाडोमण्डल -मस्तिष्क पर करने से तो कदाचिन विरलाही नजन्य विषाकना .. इसका प्रत्यल्प प्रभाव होता है। औषधीय मात्रा दृष्टिगोचर होती है। परन्त मे निधन प्राणी जो
अथवा एक ही बड़ी मात्रा में इसका उपयोग । दृपिन राई के धान्य ( जिसमें प्रगट ग्राफ राई करने से सवोत्कृष्ट वातकेन्द्र प्रभावित नहीं होते। वर्तमान होती है) भक्षण करते हैं,प्रायः वे क्रॉनिक पर यदि चिरकाल तक इसका निरंतर उपयोग अगो टिज़्म ( पुरातन प्रकार के अर्गट विप) से किया जाए तो विशेष प्रकार के लक्षण उपस्थित श्राक्रांत पाए जाने है। निम्नलिखित इसके दो हो जाते हैं, जिनको श्राक्षेपयुक्त अर्गटजन्य स्वरूप होने हैंविषानता (Spasmotlic ergotisum)
(१) ग्रीनस अगांटिमकहते हैं।
धमनियों के संकुचित हो जाने से चूं कि रक्क गर्भाशय --गर्भवती खियों तथा नद्र जीवों में
समग्र अवयवों में यथेष्ट परिमाण में नहीं पहुँच गर्भावस्था विशेषकर प्रसवकाल में अर्गट के प्रयोग ,
पाता; अतएव पोषण विकार के कारण शरीर के से जरायु इतनी तोत्र गति से अांकुचित होता है : विभिन्न अवयवों में विशेषकर हस्तपाद में कि तदाभ्यन्तरस्थित सभी वस्तुएँ बहिर निर्गत : गैंग्रीन ( (Guhgrthe ) की दशा उपस्थित हो जाती हैं । अतएव यह एक सबल गर्भशातक , हो जाती है जिसका पेस्लेग्रा ( Iellsgra) से (आशुतसवकारी) औपध है। इसको बड़ी । निणय करने में भ्रम न करना चाहिए। मात्रा में प्रयुक्त करने से टेटेनिक स्पैम ।
(२) स्पैमोडिक अोटिज्म (पाक्षेपयुक्त अर्गट (धानुस्तम्भीय श्राक्षेप) होने लगता है। यह
विर) इस प्रकार के रोगी को प्रथम कण्ड वा गुदबात अभी सन्देहपूर्ण है कि आया यह गर्भ- '
गुदी का बोध होता है अथवा सम्पूर्ण शरीर पर शातक भी है ? क्योंकि जब तक दरविज़ह प्रारंभ
चिटियाँ रेंगती हुई प्रतीत होती है। तदनन्तर न हो इससे जरायु संकुचित नहीं होता । गर्भ
सनसनाहट और स्थानिक संज्ञाशून्यना का अनुविहीन वा शून्य जरायु पर इसका बहुत साधारण
भव होता है। श्रस्तु साधारणत: पहिले हस्तपाद प्रभाव होता है; बल्कि कुछ प्रभाव नहीं होता
श्राक्षेपग्रस्त एवं प्रसन्न हो जाते हैं । पुनः सम्पूर्ण अर्थात् इससे गर्भाशयिक तन्तु संकुचित नहीं
शरीर की यह दशा हो जाती है। सुधा बढ़ जाती होते । सम्भवतः इसका या मात्र गर्भाशय के
है । वरण व दर्शन में अन्तर आ जाता है । मांसधारीविहीन मांस पेशियों पर सरलोशेजक असर !
पेशियों की निर्बलता के कारण गत अस्थिर हो होने से और किसी भाँति सौपुम्न गर्भाशयिक
: जाती अर्थात चाल लम्बड़ाने लगती है । वातकेन्द्रों को गति प्रदान करने के कारण हुआ
नाड़ी की गति अत्यन्त मंद हो जाती है, वमन व करता है। ...
विरेक प्रारम्भ हो जाते हैं । अन्ततः माांगाक्षेप .. प्रस्राव ( रसोद्रेक )-अर्गट के प्रयोग से
होकर ऐम्फिक्म्यिा (श्वासावरोध) की दशा में झाला, धर्म, दुग्ध तथा मूत्रोम्पत्ति व प्रसाब घट
मृत्यु उपस्थित होती है। जाता है । जिसका कारण यह होता है कि समग्र शरीर की रकवाष्टिनियों के संकुचित हो जाने से उक दवा की, 'उत्पन्न करनेवाली ग्रंथियों में |
अर्गट द्वारा विपात्र होने पर निम्न मिण का रक यथेष्ट परिमाण में नहीं पहुँचता ।
व्यवहार करें__अगट-अगदतन्त्र
ईथरिम प्यार . ३० मिनिम (अर्गट के विधान प्रभाव वा.लक्षण)
टिंक्चर आपियाई १० मिनिम * क्रॉनिक अंगोटिज़म (अर्गट द्वारा चिरकारी मिरूपाई
५.ाम विषाकता)-औषधीय मात्रा में इसका उपयोग | एक्की द्विम्टिलेटा ४ ड्राम
अगद
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