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अगटा
अर्णोदा। यह फफ वी सीकेली सिरिएली ( Secale एक ग्लकोसाइड । (४) अगं टॉयसीन Cereale) नामक धान्य में जिसको आँग्ल ( Ergotoxine. )-एक गैंग्रीनोत्पादक भाषा में कॉमन राई ( Common Rye): सत्व जो प्रयोग करने पर व्यर्थ सिद्ध होता है।
और अरबी में शैलम या जत्रेदार कहते हैं, लग ।। कहते हैं कि यह इसका प्रभावात्मक अंश है। जाती है ( अर्थात उक फदी छत्रकीय जी- अगोटीनीन इसका अनुहाइड्राइड है। (५) वाण या वानस्पतिक कीट राई के दाने के भीतर ! अग मीन ( Ergamine. ) तथा (६) प्रविष्ट होकर उसकी रचना में परिवर्तन उपस्थित । टायरेमीन ( 'I'yramine.)। (0) एक कर देते हैं।) तब उक्र विकृत राई को जो वास्तव स्थिर तैल ३००/o, (८) ट्राइमीथल अमाइन में उक फफ दी से पूर्ण होती है, अर्गट वा अर्गट जो इसकी गंध का मूल है और (६ ) टैनोन प्रॉफ राई कहते हैं।
तथा रञ्जक पदार्थ प्रभूति अवयव इसमें विद्यमान वर्णन-इसके किसी भाँति नोकीले त्रिकोणा- ,
होते हैं।
संयोग-विरुद्ध (Incompatibles. )कार साधारणतः वक्र दाने होते हैं जिनकी नोक । पतली होती है। ये से वा एक इंच लम्बे .
ग्राही ( Astringent. ) श्रीषध और मेटैऔर इंच चौड़े होते हैं। इनके दोनों पृष्ठ ।
लिक साल्ट्स (धातुज लवण)। . विशेष कर नतोदर पृष्ठ तीन परिखायुक्र होते हैं। ___ प्रतिनिधि-कार्पास मूलत्वक | नोट- स्त्री और दाने स्फुटित ( चिड़चिड़ाए या चटखे)
रोगों की चिकित्सा में कार्यास अर्गट से श्रेष्ठतर होते हैं। बाहर से ये मील लोहित । वनकशई
एवं निरापद है । देखो-कार्यास । स्याह ) और भीतर से प्याजी श्वेत वण' के और सूचना-अर्गट के समूचे दानों को सुरक्षितभंगुर होते हैं अर्थात् इनको जहाँ से ताई वहीं तया शुष्क करके ( अग्नि पर नहीं, प्रत्युत प्रशांत से टूट जाते हैं । गंध विशेष प्रकार की अग्राह्य चूर्ण के उशाप पर शुष्क करें') सर्वथा शुष्क एयर और स्वाद खराब ( कुस्वाद ) तथा हृल्लासकारक टाइट अर्थात् वायुरोधक शीशी में डालकर और होता है।
उसमें किंचित् कपूर डालकर रखें जिसमें वह
विकृत न हो एवं उसमें कीड़े न लग जाएँ। इस रासायनिक संगठन-रासायनिक विधि
श्रोषधि का चूर्ण बहुत शीघ्र विकृत हो जाता है। अनुसार अर्गट का विश्लेषण करने पर इसमें
___ संयुक्र राज्य अमेरिका की फार्माकोपिथा में अनेक पदार्थ पाए जाते हैं। उनमें से इसके केवल
लिखा है कि एक वर्ष पश्चात् यह अप्रयोजनीय प्रभावात्मक सत्वों का ही यहाँ रल्लेख किया
हो जाता हैं। जाता है । वे निम्न हैं
प्रभाव---श्रावप्रवर्तक, गर्भशातक और (१) स्केसालिनिक एसिड (Spha- साबागीय रकस्थापक । celinic acid.) (जिसका प्रभाव स्फेमी- औषध-निर्माण तथा मात्रा-- लोटॉक्सीन के कारण होता है ) गर्भाशयिक मांस चूर्णित अगंट, १० से २० ग्रेन, प्रसव हेतु, पेशियों के संकोचनके अतिरिक्र यह रक्रवाहिनियों ३० से ६० ग्रेन। को भी शाकुचित करता है । यह जल में अविलेय तरल रसक्रिया (सार), १० से ६० पर ऐलकोहल ( मद्यसार ) में विलेय होता है। मिनिम । (२) कॉन्युटीन (Cornutine.)-यह घन सत्व ( रसक्रिया), १ से १ ग्रेन । एक ऐलकलाइड (शारोद) है जिसका मुख्य . फाएट (४० में ), १ से २ ल. पाउस। कार्य जरायु सम्बन्धी मांसपेशियों का संकोचन तैल, १० से २० वा ३० मिनिम प्रसवार्थ । है। यह जल में अविलेय होता है। (३), टिंव चर वा पासव (१ से ४ प्रूफ स्पिरिट), अर्गेटिनिक एसिड (Ergotinic acid.). १०से ६० मिनिम ।।
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