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परिमईः
मरिमेद
गुण-इसका मांस कठिनता से पचने वाला, पिरिछल, हृदयोजक, स्मृतिवर्धक तथा वात
व कफवर्धक है। (इं० १० ई.) अरिमहः Brinarddah-सं० पु. कासमई
सुप, कसौदी। काल काशन्दा-बं० । कासविंदा -मह। (Cassia Sophorn.) रा० नि०व०४।
गुण-इसका पत्र रुचिकारक, बलकारक, विष, कास तथा रक्रनाशक है और मधुर, वात कफनाशक, पाचक, कराठशोधक तथा विशेष रूप से कासार, विषघ्न, धारक और हलका है।
भा०पू०१ भा० । अरिमाशत arimashata-सं० पु. खदिर,
खैर वृक्ष । Catechu tree ( Acacia catechu, Villd.) अरिमेदः,-क: arimedah,.kah-सं० पुं० । भरिमेद arimeda-हिं० संज्ञा पु.
(1) एक वृक्ष । (A kind of tree.) (२) एक बदबूदार कीड़ा । गँधिया । गंधी। (A green bug.)। (३) विट्खदिर।। गृह बबूल, गन्धावल, दुर्गन्ध खैर, विलायती बबूल ( कीकर )-हिं० । गू-कीकर-३० ।
विटा, हरिमेदः, श्रासमदः, दरिमेदः क्रिमिशालयः, मरुद्रुमः कालस्कंधः (रा. नि.), काम्बोजी, मरुजः, बहुसारः, गोरटः, अमराज, पतरु, सारखदिरः, महासारः, शुद्र खदिरः, दुश्खदिरः ( रा० नि० ), परिमेदः, रिमेदः, गोधास्कन्धः, अरिभेदकः, अहिमारः, पूतिमेदः, अहिमेदः, विट्त्रदिरः-सं० । गबाबूल, गुया-बाबला, विट् स्वयेर, गुयेबाबला,दुगंध खदिर, कोटानागेश्वर-बं० । अकेशिया फार्नेशियाना या माइमोसा फार्नेसिएना ( Acacia farnesiana, Willd., syn. Inimosa farnesiana, Linn)-ले०। पिय् वेलम्, हिय् वेल, वेदवला, विकरु-विल-ता। पियि-तुम्म, बल्यु-तुम्म, नाग-तुम्म-त०। पी-वेलम्, करीवीलाम्-मल०। करी-जली, करर्यवेलु, जाली -कना० । गु-बावल-१० । गन्धी हिम्बर,
गुइ बवल-मह. | नन्लू-मैं-बर्मी०। कुए-बबल -सिंध० । कुसरी-झाइको ।
शिम्यो वर्ग (V.O. Leguminosue) उत्पत्ति-स्थान-सम्पूर्ण भारतवर्ष, हिमालय से लेकर लंका पर्यन्त ।
6-निर्णायक-नांट---अरिमेदकी ताजी छाल और काष्ठ की गंध मानुषी विष्ठा के सद्वत् होती है। प्रस्तु, उपयुक्र प्रायः इसके सभी पर्याय बिट-गंधि बोधक हैं। तेलगु नाम कस्तूरि-तुम्म जो किसी किसी ग्रंथ में इसके परियाय स्वरूप लिखा गया है और जिसका अर्थ कस्तूरी-गंध वर होता है इसके लिए प्रयुक्र नहीं किया जाना चाहिए। कारण स्पष्ट है। मेसन्स नेचरल प्रोडकुशज ऑफ बर्मा नामक ग्रंथ में इसके दो पर्याय और लिखे गए हैं। यथा-(1) नान्लून्स्त्रैन् जिसका अर्थ उत्तम गंध और ( २ ) जिसका अर्थ दुगंध है। इनमें से प्रथम शब्द का इसका पर्याय होना संदेहपूर्ण है। कारण वही है जैसा तेलगु शब्द कस्तूरी-तुम्म के लिए वर्णन किया है। इसीकारण इन संज्ञानी को उपयुक तालिका में नहीं लिखा गया।
दक्खिनी संज्ञा गू-कीकर कभी कभी पार्किनसोनिया एक्युलिएटा (Parkinsonin aculeata) के लिए भी प्रत्युक्त होता है। परंतु इसको जंगली कीकर कहना अधिक उपयुक्त होगा।
वानस्पतिक-वर्णन-इसके वृक्ष सर्वथा (बबूल, कीकर ) वृक्ष के समान होते हैं, केवल भेद यह है कि इसके काटे छोटे होते हैं और इसके पत्र प्रादिसे विष्ठावत् गंध पाती है । ( पूर्ण विवेचन हेतु देखो-चवर वा खदिर।)
इससे एक प्रकारका निर्यास निर्गत होता है जो गोलाकार अश्रुरूप में प्राप्त होता हैं। इनमें क्रमशः पांडु, पीत तथा गंभीर रकामधूसरवों की श्रेणियाँ होती हैं । डेकन में बम्बई और पूना के पास पास जो गोंद एकत्रित की जाती है वह अल्प विलेय होती है।
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