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अरारोबा
के पश्चात् लेखक (Sir. V. whitla) एवं दद्रु प्रभृति त्वरोगों में शीघ्र एवं निश्चय को इस बात से सन्तुष्टि हुई, कि यदि उक्र प्रलेप प्रभावकारी जो औषध मुझे मालूम हुई है वह को केवल रोग स्थल तक ही सीमित रक्खा गोश्रा पाउडर तथा नीबू स्वरस घा सिरका है। जाए एवं स्वस्थ स्वचा को उसका पर्श न होने इनको दिन में २ या ३ बार निरन्तर लगाने से दिया जाए तो इसको आवश्यकता हीन हो। श्रापका पूर्ण लाभ होता है। प्रलेप-विधि-योड़ी सो विश्वास है कि यह छोटी सी बात इसकी चिकि- दवा को सिरका वा मीबू के रस में घोलकर • त्सा की सफलता का गुन तत्व है।
जब वह मलाई की भाँति होजाए सर उसे डॉक्टर फॉक्स ने क्राइसारोधीन को जल के विस्फोटक पर कुछ दूर तक प्रलेपित कर । साथ पीस कर इसका कल्क प्रस्तुत कर इसे धब्बों
(डाइमाक) पर लगा ऊपर कोलोडिअन से श्रावरित करने की
अन्तःप्रयोग-क्राइसारोबीन के अन्तःप्रयोग सम्मति दी है। (Tramaticine ) अर्थात्
से विचचिका (Psoriasis), ज्वलनशील गहापर्चा इससे भी श्रेष्ठतर, सिद्ध होगा । मक
विस्फोटक ( Ecze na) तथा यौवनपीडिया प्रलेस वर्तिकाएँ Brookes' salve sticks !
अर्थात् मुहासा प्रभृति में लाभ होता है, परंतु
अति न्यून माया ( ग्रेन) में भी इससे प्रायः उससे भी उत्तम होती हैं। परन्तु पूर्वक्रि सम्पूण विधियों में से सर्वोत्तम विधि लेखक द्विरलों की !
उदर में ऐंठन, रेचन द वमन होते हैं, मुभा राय में धब्बे को औषध के तीन कठिन प्रलेप था :
कम हो जाती है और व्यग्रता प्रतीत होती है। कल्क द्वारा प्रावरित कर रखना और उसके सिरे
प्रस्तु, इसका मन्तःप्रयोग न करना चाहिए। पर रबर प्रस्तर का एक बड़ा टुकड़ा स्थापित !
योग-निर्माण विषयक आदेश-क्राइसाकरना है।
रोबीन को मुख मण्डल पर नहीं लगाना चाहिए।
क्योंकि इसके क्षोभ से नेग्राभिष्यन्द होने का भय विचर्चिका (I'soriasis)रोगसे पीड़ित प्राणी
रहता है । परन्तु शिर पर १५ ग्रेन प्रति श्राउंस के शरीर को एक ओर के विकारी स्थल पर
वाला प्रलेप लगा सकते हैं। प्रलेप के मन से उसका स्थानिक प्रभाव देखा
__ काईलारीबीनको एकही समय शरीर के अधिक जा सकता है । सप्ताह अथवा दस दिवस में उन ।
भाम पर नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इसके ओर को स्वचा के सुधार का निश्चित चिद दिखाई। शापित हो जाने से बुरे लक्षण उपस्थित होने का देता है । इसकी दूसरी ओर की त्वचा पर भी यह
भय रहता है। अस्तु, यदि शरीर पर बहुत इससे कम स्पष्ट नहीं होता। और उन औषध
विस्तारर्स दद् हो तो उसके थोड़े थोड़े भाग पर को यधोक्र विधि द्वारा उपयोग करने से विकृत
दवा लगाते रहें । जब एक अोर से वह अच्छा हो धब्बे लुप्तप्राय होने लगते हैं। तब उस ओर की .
जाए तब दूसरी ओर दवा बगाए। .... स्वचा भी जिस और औषध नहीं लगाई गई है।।
वल पर जो काइसाराचीन प्रोप पड़ परिणामस्वरूप सुधार के चिह्न प्रगट करने ;
जाता है वह वानस्पतिकाम्ल. पोटाश या क्लोरिने. लगती है। लेखक ने उन औषध को निरन्तर !
टेड लाइम के हलके घोल से दूर हो जाता है। . उस स्थल पर लगाने से जिसपर सर्व प्रथम प्री
. . अथवा उस पर प्रथम बेजोन लगाकर उसकी पध लगाई गई हो शरीर के सम्पूर्ण पृष्ठतल ।
चिकनाई को दूर करें और फिर उस पर कोरीने. को रोग मुक्र होते हुए पाया। सम्भवतः ऐसा ।
टेड लाइम का घोल लगाएँ। कभी कभी . औपध के शरीर में शोषित होजाने और विकारी ।
किञ्चित् कास्टिक सोडा का घोल भी लगामा क्षेत्र तक पहुँचाए जाने के कारण होता है।
पड़ता है (मे०.मे. हिलेर). ..
अराल:arilah--सं० पु. "विस्फोटक, विसर्मिका (Psoriasis) , अराल arāla--हिं० संज्ञा पु)
(१) धूप,
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