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शंयोरजादि लेपः
के साथ चाटने से कामला दूर होता है । वृ० नि० र० ।
अयोरजादि लेपः ayorajádilepah- सं० पुं० ( १ ) लोह चूर्ण, कसीस, त्रिफला, लवंग और दारु हल्दी का लेप करने से नवीन त्वचा का रंग पूर्ववत् हो जाता है । ( २ ) लोहचूर्ण, काला तिल, सुरमा, वकुची, आमला इनको जलाकर भांगरे के रस में पीसकर लेप करने से किलास कुष्ठ ( तांबे के समान रंग वाले कोद, श्वेत कुड का भेद ) का नाश होता है । इसे जिस स्थान पर लगाना हो पहले खुजलाकर लेप करना चाहिए । यः पान ayab-pana-सं० ली० द्रवीभूत तप्त लोहे का पान, अयस्थान | नर्कमें तप्त लोहे का पान करने को कहा है।
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trः पिण्ड ayah-pinda - हिं० पु० लौह पिंड, लोहे का गोला ।
अयः शूल ayah-shula - हिं० संज्ञा पुं० [सं०] ( १ ) एक श्रत्र । ( २ ) तीव्र उपताप | अयोवस्तिः ayo-vastih - सं० पु०, प्रो० वस्ति कर्म विशेष ( A kind of enemata. ) । यथा - "पुरण्डमूलं निःक्काथ्य मधुतैलं ससैन्धवम् । एप युक्र ग्रयोवस्तिः सवचापिप्पली
फलः ॥ भा० |
अय्म aya-ता० देखो - अयम् । अश्याम् श्रव्वल ayyanavval अ० रोगारम्भ काल अर्थात् शारम्भ रोग से तीन दिवस | अय्याम् इज्ज़ार ayyam-inzáro रान
की सूचना देने वाले दिन इन दिनों में विशेष प्रकार के परिवर्तन पाए जाते हैं जिनसे यह सूचित होता है कि उक्त रोग का प्रमुक दिवस बुहरान होने वाला हैं, यथा--- नवीन रोगों में प्रथम दिवस परिपक्कता ( नुबु ) के प्रभाव का प्रगट होना चतुर्थ दिवस बहुरान उपस्थित होने की सूचना देता है।
अय्याम् गैर बाइरिय्यह, ayyám-ghairbáhúriyyáh-० वह दिवस जिनमें बुहरान उपस्थित नहीं होता। वे निम्न तेरह दिवस ई – २२ व २३ वॉ, २५ वाँ, २६ वाँ, २८ वाँ,
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२६ व ३० व ३२ व ३३ वाँ, ३२ ३६ व ३८ वीं, तथा ३६ वाँ । किन्तु, शेख निम्नलिखित रोगों की अय्याम दौर बाहूरिस्यह माना है -- पहिला, दूसरा, दसवाँ, बारहवाँ, पन्द्रहवा, सोलहवीं, तथा बीसवाँ । अय्याम् बाहरिय्य, ayyám-bahüriyyah अय्याम् बुह्रान ayyám bubran-ऋ० वह दिवस जिनमें बुरान ताम उपस्थित हो । वे निम्नांकित ११ दिवस हैं । इनमें नवीन रोगों का बुहरान उपस्थित होता है
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चौथा, सातवाँ, चौदहवाँ, बीसवाँ इक्कीसवाँ, चौबीसवाँ, सप्ताईसवाँ, इक्तीसा, चौतीसवींसैतीसवाँ तथा चालीसा । किसी किसी ने प्रथम व द्वितीय दिवस की भी श्रय्याम् गुद्दे राम में गणना की है। पुरातन रोगों का सर्व प्रथम बुहरान चालीसवें दिन उपस्थित होता है । अय्याम् वाकू फिल्वस्तु ayyam-vagāa fil vast - अ० मध्यकाल जो न बा. हूरी ( बुह रान काल) हो और न इब्ज़ारी (बुहरान सूचक दिवस) किंतु किसी घटना या प्रतिद्वन्द्विता के कारण इनमें हरान गैर ताम उपस्थित हो । वे छ दिन हैं, यथा--- ३ रा, ५ बाँ, ६, ११ वाँ, १३ वाँ, और १७ बॉ, इन दिनों में कभी दुहरान उपस्थित होता है और कभी नहीं। जिन दिनों में बुरा नासि ( पूर्ण ) होता तथा दुःख व चिन्ता होती है, वे निम्न ८ दिवस है, यथा६,८,१०, १२, १५, १६ वर, और १६ वा ।
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श्रय्यिम् ayyim - अ० विधवा या रॉड स्त्रो अथवा डुला पुरुष, अविवाहिता स्त्री वा पुरुष | इसका बहुवचन अयामा हैं। मन् ( Nun )
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अथ्यी āayyi - अ० रुक रुक कर बात करना, arrain में रुकावट होना, आजिज़ हो जाना, किसी वस्तु को न जानते हुए उसकी बातचीत से अवाक् रहना, अय्पों तथा सिहत का भेद देखोसिहत में।
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