________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अरसी
५७०
अरण्डी का वेला
(२) शीतपित्त में गणिकारिका मूल-अग्नि- :' को काली मरिच के साथ पीसकर व्यवहार करते मन्थ की जड़ की छाल को पीसकर ( कल्क )। :: है। शाखा-पत्र सहित अर्थात् गशिकारिका के गोवृत के साथ एक सप्ताह पयंत पीने से शीत- ! पञ्चांग को कूटकर क्वाथ प्रस्तुत करें। मनात पित्त, उदई और कोठ का नाश होता है। तथा वातवेदना (Neuralgia.) अस्त रोगी (शीतपित्तोदई-चि०)। (३) स्थूलता में
के अंग को उक्र क्वाथ से सेचन करें । (डिमक, गणिकारिका मूलवक---अगितमन्थ की जड़ की ३.य खंड ६७ पृ.) . . . . . छाल द्वारा निर्मित क्वाथ में शिलाजीत का प्रक्षेप :
पार० एन० चोर। महोदय के अनुसार देकर पान करने से स्थूलता नष्ट होती है।
यह एक साधारण तुप है जो भारतवर्ष के बहुत . (स्थौल्य-चि०)
से भाग विशेषकर समुद्रतटों में पाया जाता है। वक्तव्य
प्राचीन चिकित्सकों ने इसके पत्र एवं मूल में चरक, अनुवासनोपा, शोथहर एवं शीत- प्रभावात्मक औषधीय गुण के वर्तमान होने का प्रशमन वर्ग में तथा सुश्रुत, वरुणादि व बीर
उल्लेख किया है। इसकी जड़ का क्वाथ ( लगभग तादि गण में गणिकारिका का पाठ पाया है। ४ाउंस.पाइंट जल में १५ मिनट उबाल -- किसी किसी देश में वातरोगी को गणिकारिका कर)२से ४ पाउंस की मात्रा में पाचक एवं .. के पत्र का शाक व्यवहार कराया जाता है।
तिवल्य रूप से दिन में 2 बार प्रयोग किया
जाता है। इसी हेत पत्र भी व्यवहार में श्राता नम्यमत प्रभाव-अरणी पाचक, प्राध्मानहर, परिव- । संक ( रसायन) और बल्य है। . । अरणाकतुः arani-ketuh-सं० प. महाग्निप्रयोग-इसके पत्र का फांट (१० में
मन्थ वृक्ष, बड़ी अरणी । बङ्ग गणिरि-यं० । थोर
) ऐरण-मह । (Premna longifolia.) विस्फोरादि कृत उवर, शूल, उदराध्मान में १ से
रा०नि० व०। २ पाउंस की मात्रा में व्यवहृत होता है और मूलस्वक् क्वाथ (१० में .) ज्वरावसानज अरण्ड aranda-हिं० प. (१) रेडी का पेड़, दुर्बलावस्था, पूयमेह, आमवात तथा वातवेदना अंडीवृक्ष, एरण्ड । ( Ricinus vulgaris (Neuralgia.) रोग में सेवनीय है।
or Palma christi.)। (२-सं०, (मेटिरिया मेडिका ऑफ़ इण्डिया--- श्रार०एन०
हिं०, सिंध उत्तटा करा-कुमा० । (Cadaba खोरी, भा॰ २, पृ० ४७२)
harida.) ई० मे० प्ला० । एन्स्ली ( Aiuslie.) लिखते हैं- गणि- अरण्डककड़ा randa-kakaari-हिं० स्त्री० । कारिका मूल स्वक् क्वाथ हृद्य, पाचक एवं ज्वर | अरण्ड ख→ जा aranda-kharbuja-हि. में लाभदायक है। इसकी जड़ तिक एवं निय
प गंधि है तथा क्वाथ रूप में प्रयुक्त होती है। भरण्ड पपया aanda.pe payya-हि. पु.। . हीडो ( Rhec de.) इसको अप्पेल पपीता, विलायती रेड, पपय्या-हि. | अरड. नाम से अभिहित करते हैं और उसके पत्र के खरबूजा ( Carical Tapaya.)| . क्वाथ को उदराध्मान में सेवीय बतलाते हैं ! .
अ० डॉ० म० अ० । मु० अ०। . लंका में यह महामिदि या मिदि-गस्स नाम से अरण्ड तैल aranda-tails ) : प्रसिद्ध है।
अरण्डीकातैलarandi-ka-tailas ऐकिन्सन (Atkinson. ) लिखते । एरण्ड तैल, रेडी का तेल | Castor oil हैं- शैत्यप्रभव रोग एवं ज्वर में गणिकारिका पत्र (Oleum Ricini.)
For Private and Personal Use Only