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भरराषचम्पका
अररायजाईका
. वन चटक पती | धूसरः, भूमिशयः -संभ वनचटा) पाखि, गुड़गुड़, नागर भड़ई, छातार-चं०।।
गुण- इसका मांस लबु, हितावह, शोत , शुक्रन्द्र कारक, बल नद और चटक के समान |
गुण वाला होता है । वै०नि० द्रव्य गु० । अरण्यचम्पक: aranya-champakan-सं०
पु. वनचम्पक, बन चम्पा । Michelia champaca ( The wild var. of-) "नचाँपा-०।
गुण-शीतल, लघु, शुक्रवद्धक और बलबदक है। रा०नि० व०१०। भरण्य छागः aranya-chhāgah-सं० [.
वनवाग, जंगजी बकरा | बुनो छागल-बं० ।
(A wild goat). अरण्यजः aranyajah-सं० पु. ( Sesam.
um indicum) तिलक सुप, तिल वा तिल्ली का रुप 1 See--Tilakah (तिलकः) हेच. अरण्य जयपालः aranya-jayapālah-सं०
पु. जंगली जमालगोटा-हि०। (Croton po. lyandrum, Boxb. ) हाकूद, दन्ति-बं०।
देखो-दन्ती। भरण्यजा aranyaja-सं० स्त्री० पेऊँ । । अरण्यजाका aranyajardraka-सं-स्त्री०
बनाकः, वनाईका, बनजाकः ( रा० नि. व०७)। वाइल्ड जिजर (Wild ginger) -३० जिञ्जिबर कैस्सुमनार (Zingiber cassumunal, Roxih.)। फा० ई.३ भा० ।। ई० मे. प्ला० । जि. पप्युरियम् (Z. Pu. rpureum), जि. निफ्रोडियाई (Z.cliff. ordii)-ले० । ई० मे० मे०। बन पाद्रक, बन प्रादी,जंगली प्रादी-हि. । बन श्रादा-बं० । कल्यलय, करपुशुपु -ते० । राण पाले, निसा, निसण, मालाबारी हलद-मह• । जजबील श्ती-फा०,०।
आईक वा हरिदा वर्ग . (N.O. Scitamineæ or Zingiberacece.) .. उत्पत्ति स्थान-भारतवर्ष (हिमालय से | लंका पर्यन्त)
वानस्पतिक-विवरण-इसका ताजा पाताली धड़ ( Rhizome ) १ से २ इंच मोटा ( व्यास ), जुड़ा हुआ, दवा हुआ (संकुचित), अनेक श्वेत गूदादार अंकुरों से युक्त होता है, जिनमें से कुछ में श्वेत कन्द ( Tuber) लगे होते हैं। धड़ की प्रत्येक संधि पर शुङ्ग होता है। वहिर त्वक् छिलकायुक्त तथा हलका धूसर होता है। अन्तः भाग पूर्ण सुवर्ण-पीतवर्ण का, गंध प्रति तीव्र तथा बहुत प्रिय नहीं ( भाईक, कपूर तथा हरिद्रा के सम्मिलित गंधवत् ) . होती है । स्वाद उष्ण और कपूरवत् होता है।
वन पाक को सूक्ष्म रचना-बचा का ऊर्ध्व भाग पिचित (संकुचित :) एवं अस्पष्ट कोषों के बहुतसे स्तरों द्वारा बनता है। पैरेनकाहमा -- में वृहत्बहुभुज कोष होते हैं । पाताली घड़ के त्वगीय भागस्थ कोष करीब करीब स्वेत्तसारशून्य होते है, परन्तु उसके मध्य भागमें पाए जानेवाले कोष वृहत्, अंडाकार, श्वेतसारीय कणों से पूरित होते हैं । उक्र धड़ के सम्पूर्ण भाग के वृहत कोष सुवर्ण-पीत वर्ण के स्थायी तैल से पूर्ण होते हैं। वैस्क्युलर सिष्टम (कोष्टक्रम) हरिद्रावत् होता है। __ रासायनिक संगठन-इसमें निम्न पदार्थ पाए जाते हैं:ईथर एक्सट्रेक्ट (1) स्थायी तैल, (२) कसा; और (३) मृदुराल)
.६. १६ कहॉलिक एक्सटेक्ट(शर्करा.राल ७.२६ वाटर एक्सट्रैक्ट(५) निर्यास, (६) अम्ल आदि
१३. ४२. (७) श्वेतसार (८) क्रूड. फाइबर (..) भस्म (१०) भाईता . (११) भल्युमिनोहड्स और (१२) Modifi. cations of arabìn etc..), 10.95
जह कपूर तथा जायफल की मिश्रित. गंध, . तद्वत् चरपरी होती है । मृदु रात ज्वलनयुक्र स्थाद रखता है। जड़ में कपूरहरिद्रा ( Cur
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