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भरण्यवाताद
अरण्यवाताद
मला। हलियम पियू, लेट् कोय-बर०। कुप्रोमद, विरोही-गो । नय॑ ऊद गु०, मह०।
श्रावर्तनी वा मरोड़फली वर्ग (N. 0. Sterculiaveue ). उत्पत्ति स्थान-पश्चिमी घाट ( वा प्रायद्वीप), दक्षिण भारत, कोंकण, मालाबार, ब्रह्मा और लंका।
वानस्पतिक-विवरण-इसके विशाल वृक्ष होते हैं । स्टक्युलिया की अनेक जातियों से वृहत् तैलीय बीज प्राप्त होते हैं, जिन्हें दिहाती लोग खाते हैं। बीज अद्ध अंडाकार १ इंच लंबे और प्राध इंच चौड़े ( व्यास ), एक ढीले श्यामवण की झिल्ली से आच्छादित होते हैं।
आधार पर एक पीतवर्ण का अर्बुद होता है। कठिन श्यामत्वचा एक ऊरण जटित स्तर से आच्छादित होती हैं । यह भीतर से धूसर एवं मखमली होती, और इसके भीतर बीज के प्राकार की एक तैलीय श्वेत गिरी सम्पुटित होती है ।। प्रत्येक बीज का भार लगभग २ प्रामके होता है। छिलका कठिनतापूर्वक चूर्ण किया जा सकता है। उगवत् स्वचा जल में बैसारीन (Bassorin) | की तरह मद हो जाती है। गिरी में लगभग ४० प्रतिशत स्थिर तैल और अधिक परिमाण में श्वेतसार विद्यमान होते हैं ।।
रासायनिक संगठन-तैल गाढ़ा, फीका पीतषण का, कोमल और शुल्क नहीं होने वाला है।
हॉर्सफील्डके कथनानुसार इसकी फली लुभाबी तथा सङ्कोचक होती है । (ऐन्स्ली )
धूपन रूप से इसका मुख्य उपयोग होता है। कंड़ एवम् अन्य स्वरोगों में इसका अन्तर और प्रस्तर (उत्कारिका) रूप में वहिरप्रयोग होता है । इसके बीजको भूनकर खाते हैं । ( ई० मे० मे.
( ३ ) जंगली बादाम-हिं०, कच्छ, बं० ।
जावा श्रामण्ड (Java almond)-ई० 1 एलीमाइ दी ( Elemi tree), केनेरियम् कम्म्यून ( Camarium commune, Jinn.)-ले० । बाइस डी कोलोफेन (Bois. de colophane )-फ्रां० । एलीमाइ-पू० भा० । कानारि-मल। बदामी-जावा : कग्गली मर, कग्गली वीज, सम्बाणी, जावा बदामी यौनी-कना। बादाम जावी-हिं०। मन्शिम -अ०।
महारुख व नॉट ऑफिशल
(Vol official) (N.O. Burserracete., or amyridocec & simrubacew).
उत्पत्ति-स्थान-मलया प्रार्चीपेलेगो, पूर्वी भारतीय द्वीपसमुदाय, पेनैंग, मलया, ट्राबनकोर, दक्षिणी भारत में इसको कृषि की जाती है।
इतिहास-रस्फियस ( Rumpheus) के वर्णनानुसार यह सीराम और उसके आसपास के महाद्वीपों में होनेवाला एक विशाल वृक्ष है। जिससे इतनी अधिकता के साथ राल उत्पन्न होता है कि वह वृद्धत् दुकड़ां अथवा शंकाकार अशु रूप में धड़ तथा मुख्य शाखाओं से लटके रहते हैं। प्रारम्भ में यह श्वेत, तरल एवं चिपचिपा; किन्तु पश्चात् को यह पीताभायुक्र और मोमवत् गादे हो जाते हैं। वह आमण्ड बादाम)का भी वर्णन करते हैं और कहते हैं कि उसे कच्चा खाने से रेचन पाते हैं तथा अजीर्ण हो जाता है ।
स्पेल के विचारानुसार :आमएड इन्नसीना धर्शित मन्शिम है जो उनके वर्णनानुसार बतम
प्रयोगांश-पत्र, पुष्प, बीज, स्वक् । प्रभाव तथा उपयोग-लोरीरो ( Lource : iro)के कथनानुसार उक्त वृक्ष की त्वचा (वा पत्र) रेचक, स्वेदक तथा मूत्रल है। चीनी लोग इसे जलोदर तथा प्रामवात में देते हैं। पुष्प विष्ठावत् गंध के लिए प्रसिद्ध है । (डाइमॉक)
इसके बीज तैलीय होते हैं और जब इसे असाव- | धानी से निगल लिया जाता है तो उस्नेश जनित होता तथा शिर चकराने लगता है । इं० मे०
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