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अनवेदि
छठवें या आठवें महीने बालक का प्रन्न श्राहार करना | भा० | बच्चों को पहिले पहिल श्रन्न चटाने का सस्कार । चटावन । पसनी । पेहनी । (Ceremony of giving Farinaccous food to a baby for the first tine ).
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नोट- स्मृति के अनुसार छठे या आठवें महीने बालक की और पाँचवें वा सातवें महीने बालिका को पहिले पहिल न चटाना चाहिए । अनवेदिannabedi - ता० हीराकसीस | (Ferri sulphas ) स० [फा० ई० । अन्नभेदि anna-bhedi - मल०, ते० कसीस, हीराकसीस | Ferri sulphas (Sulphate of iron or green vitriol )ĦTO फा० ई० ।
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अन्नमण्डः aunamandah - स० पुं० ( Rice gruel ) मोड़, भक्कमण्ड, मण्ड, भात का माँड़ | मातेर माड़-बं० | देखो - मण्डः ( Mandah)। गुण- बुद्बोधक ( सुधा पैदा करता ), वस्तिविशोधक (मूत्रल), प्राणप्रद तथा शोणितवद्ध क । ज्वरनाशक, कफ पित्त नाशक और वायु नाशक है । ये गुण मण्ड ( माँड़ ) में पाए जाते हैं । च० ३० श्रग्निमां० त्रि० ! श्रन्नमयः annamayah - सं० पु० ( Physi cal body) स्थूल शरीर | देखो - शरीर । श्रश्नमयकोशः anna-maya-koshah-सं० yo ( Physical body) वेदांत के अनुसार पञ्च कोषों में से अन्तिम ( पाँचवाँ ) कोश विशेष ! ( यह पञ्चतत्वमय तथा त्रिगुणात्मक होता है ) न से बना हुआ त्वचा से लेकर वीर्य तक का समुदाय | स्थूल शरीर | देखो - शरीर | अन्नमल annamala - हिं० संत्रा पु० अन्नमलम् annamalam-सं० क्लां०
(१) पुरीष मल, विद्या ( Excrement, Faces) | (२) मद्य, सुरा, मत्र आदि अन्नसे बनी शराब | ( Wine ) बै० श० । अन्नमार्ग anna-marga - हिं० सञ्ज्ञा पुं० आहार पथ, अन्नपाक नाही | कनात् ग़िज़ाइय्यह,
विकार
कनात् हज़ मिथ्य - अ० 1 ग़िज़ा या हजम की नालो - उ० ।
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एलिमेण्टरी कैनाल ( Alimentary canal ), डाइजेस्टिव ट्रैक्ट ( Digestive tract ) - इं० ।
शरीर की नलियों में से वह जिसमें पचने तक भुक्र पदार्थ रहता है । यह नली बहुत लम्बी होती है। इसका श्रारम्भ मुख से होता है । और इसका धन्त नीचे जाकर मलद्वार पर होता है । प्रौढ़ावस्था में मुख से मलद्वार तक की लम्बाई २८- २६ फुट ( नौ दस लगभग होती है।
मार्ग गज ) के
( . १ )
अनरसः anua-rasah-सं॰ पुं० ( Rice-gruel ) मण्ड, माँड़, भात का माँड़, भक्रमण्ड । बैं० श० । ( २ ) आहाररस । ( Chyle ).
अनलिप्सा
anna-lipsá-सं० स्त्री०
भोजन ( खाने की इच्छा, भूम्ब, सुधा । ( Appetite, Hunger) वै० निघ० । “प्रकृति गामिमनोऽलिप्सा । " ० द० ।
S
न
अश्नवहा aunavahá सं० खो० भ्रमनी युगज, नाहि स्त्रोत द्वय ( इनकी जड़ श्रामाशय और श्रमवाहिनी धमनी है ) । इनसे भोजन किया हुन्न उदर में पहुँचाया जाता है । सु० शा० ६ अ० ।
श्रन्नवाहि स्रोतः anta-vahi-srotal सं० क्ली० गलनाड़ी, अन्नप्रणाली, कंठनलिका । ((Esophagus ) गलार नली - बं० । वै०
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श० ।
अन्नविकारः auta-vikarah - सं० पु० rafaair anna-vikara - हिं० संज्ञा पुं०
(१) विष्ठा, मल ( Excrement, Fces ) ! ( २ ) शुक्र, वीर्य ( Seminal secretion, semen ) | ( ३ ) भङ्गविकृति, Rice gruel) नण्ड, मांड। (४ परिवर्तित रूप | श्रश्न पचनेसे क्रमशः बने हुए रस, रक्र, मांस, मज्जा, चरबी, हड्डी और शुक्र आदि ।
श्रख का