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प्रयापान
भयापान
मिलती है.-'यह दक्षिणी अमरीकाका एक पौधा है जो अब भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों तथा जात्रा लंका प्रभृति द्वीपों में उत्पन्न होता है और साधारणतः अपने ग्राजील संज्ञा अयापान नाम से विख्यात है। सम्पूर्ण पौधा सुगंधित किञ्चित् कटु वा कषाय स्वादयुक्त होता है। यह एक उत्तम उत्ते. जक, धक्ष्य तथा स्वेदक। बॉटन (Bouton) के कथनानुसार मॉरीशियस (Mauritius) के औषधीय पौधों में यह सर्व अष्ट प्रतीत होता है। अजीर्ण तथा या वा फुप्फुस के अन्य विकारों में शीतकपाय रूप से यह वहाँ दैनिक उपयोग की वस्तु है। उक्र द्वीप की सन १८५४ -५६ की विशूचिका महामारी में शरीर के वाह्य भाग की उप्मा के पुनरावर्तन तथा रणसंभ्रमण शैथिल्य को तर करने के लिए इसका अधिकता के साथ उपयोग किया गया है । सर्पदंश के प्रतिविष स्वरूप इसका अन्तः वा वहिः प्रयोग सफलता के साथ किया जा चुका है। यद्यपि सामान्य रूप से यह अज्ञात है, तथापि बागों ( यम्बई ) में प्रायः होता है और जो इसे जानते हैं वे इसकी बड़ी प्रशंसा करते हैं। डाइमोक
वानस्पतिक विवरण-एक लघु भूलुण्ठित शुपवत् पौधा, ५ से ६ फीट ऊँचा, शाखाएं सरल रक्राम (सुखी मायन), कतिपय साधारण बिखरे हुए (विरल)लोमों से भ्याप्त, नूतन अंकुर एक प्रकारके श्वेत बासमीय नात्र के सूक्ष्म मात्रओंकी उपस्थिति के कारण कुछ कुछ भुर भुरे स्वरूप के होते हैं। पत्र सम्मुखवी, युग्म जिनके आधार प्रकार के चारों ओर संलग्न होते हैं तथा ४-५ इंच सम्बे और इंच चौड़े, मजापूर्ण, ऊर्ध्व पृष्ठ विषम (खुरदरा !, अधः पृष्ठ लोमश तथा राजीय विन्दु युक्त (पी.पी. एम.), चिकने (सम सल), भालाकार ( शंक्वाकार कचित् ), पारीवत्, साधारपर पतले शिराम्याप्त होते हैं, माध्यमिक नस (शिरा) मोटी, सुमी मायल, इसके मल ने से अच्छी गंध माती है। पुष्प प्राउडसेलबत्, बैंगनी; गंध निर्वन तथा सुगंधिमय कुछ कुछ, इश्कपेचा ( Ivy ) के समान, किन्तु अधिक माय; स्वाद सुगंधित, कटु तथा कषाय (विशेष
प्रकार का) होता है । डाइमांक । पी० बी० एम०।
रासायनिक संगठन-(या संयोगी अवयव) डा० डाइमॉक महोदय के विश्लेषणानुसार इसमें दो सत्व पाए गए । इनमें से (1) एक वर्णरहित उड़नशील तैल जो ताजे पौधा को जल के साथ परिचत करनेसे प्राप्त हुश्रा और (२) एक स्फटिकवत् (रवादार ) न्युट्रल ( उदासीन) सत्य जिसका नाम उन्होंने प्रयपानीन या श्रयाश्नीन (Ayapanin) रक्खा । जल में यह अविलेय तथा ईथर वा मधसार में विलेय होता है। इसके सूचीवत् दीर्थ रवे (स्फटिक) होते हैं। यह १५.० १६०° के उत्ताप पर सरलतापूर्वक उध्र्वयातित हो जाता है।
प्रयोगांश-सम्पूर्ण पौधा (शुष्क पत्र, पुष्पावित शाखाएँ तथा कलिकाएँ वा कोंपल ) औषध कार्य में प्राता है।
श्रीषध निर्माण-पत्र-स्वरस, मात्रा-से १ तो। शुकशुप-२० से ६० ग्रेन (१०-३. रत्तो) तरल सत्व-१ से २ फ्ल. हा०॥ घन सत्व-१० से २५ ग्रेन (१-१२॥ रत्ती ) शीत कषाय-(२० में 1 )-1 से ३ फ्लुक प्राउंस ( प्रभायावश्यकतानुसार )।
युपेटोरीन (घन )-१ से ३ प्रेन ( से ॥ रत्ती)।
इन्फ्युजम युपेटोरियाई ( Infusum Eupatorii)-ले०। हन्फ्यु जन अॉफ योनसेट ( Infusion of Boneset. )-ई० । घयपान शीत कषाय-हि.1 खिसाँदा प्रयापना -फा०, २०!
. . निर्माण-विधि-एक भाग यूपेटोरियम् को १० भाग उण जल में ३० मिनट तक भिगोकर छान लें। मात्रा-प्राधा से १ फ्लु. पाउस।
(२) फ्लुइड एक्सट्रैक्टम् युपेटोरियम् (Fluid Extractum Eupatorium)-ले० । फ्लुइड एक्सट्रैक्ट प्रॉफ युपेटोरियम् ( Fluid Extract of Eupatorium )-इ । अयपान तरल सत्व-हिं० ।
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