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अपस्मार
मा. नि०। बारबार चेत कर लेना, स्वचा का (१) अपस्मार तथा शिरोभ्रमणपीला पड़ जाना, भूमि को खोदने लगना, प्यास अपस्मार रोगी अकस्मात पृथ्वीपर गिर पड़ता का लनना और भयानक, प्रदीप्त एवं क्रोधित रूप है और उसके हस्तपाद आक्षेपग्रस्त हो जाते हैं देखना श्रादि लक्षण वाग्भट्ट महोदय ने अधिक एवं उसके मुख से कफ जारी होता है। इसके लिखे हैं।
विपरीत शिरोघूर्णन में यद्यपि रोगी चकर स्वाकर कफापस्मार-कफ की मृगी वाला रोगी गिर पड़ता है तो भी न उसके हस्तपाद आपेपसफेद रंग के रूप को देखकर ( मानो कोई श्वेत प्रस्त होते हैं और न तो मुख में झाग ही पण का मनुष्य सामनेसे उसके पास दौड़ा प्राता श्राता है। है ऐसा देखकर-सुश्रुत) मूञ्छित हो जाता है।
(२) अपस्मार और योपापस्माररोगी का मुख, मुख का भाग, नेत्र और अंग .
देखो - योषापस्मार । सफ़ेद हो जाते हैं, शरीर शीतल हो जाता है,
(३) अपस्मार और प्राक्षेपकरोमहर्ष होता और देह में भारीपन होजाता है।
देखो-आक्षेपक । श्लैष्मिक मृगी का रोगी अन्यान्य मुगी बालों की
स्वास्थ्य संरक्षण अपेक्षा देर में चैतन्य होता है। मा. नि।
रोगारम्भ से पूर्व जिस स्थान पर सुरसुराहट मुख से लार का अधिक गिरना और नख का
का बोध हो उससे ऊपर एक रूमाल या पटका " श्वेत हो जाना वाग्भट्ट ने अधिक लिखे हैं।
कसकर बाँधना और वेग से पूर्व उक्र क्रिया का वा० उ०७ अ० ।
दोहराना या उक्र स्थल पर चुटकी लेना, सर्दी, त्रिदोषज वा सान्निपातिक अपस्मार
गर्मी अथवा बिजली लगाना या ब्लिष्टर लगाना और अपस्मार की असाध्यता
(फोस्का उत्पन्न करना) या उस स्थल की नाही जिसमें तीनों दोषों के लक्षण मिले उसे त्रिदो.
का छेदन करना, प्रायः लाभदायक सिद्ध होता पज अपस्मार कहते हैं। यह तथा क्षीण पुरुष का पुराना अपस्मार भी असाध्य है। जो बहुत कापे,
दोनों हाथों को उष्ण जल में रखना मन्था पर पीण हो और जिसकी भौंह चलायमान हो और
बर्फ़ लगाना,५१०मिनट तक उछलना कूदना नेत्र टेढ़े हो जाएं ऐसे अपस्मार रोगी असाध्य हैं।
या ज़ोर से पढ़ना, वस्तिदान, वमन कराना या मा० नि।
विरेचन देना, २० ग्रेन क्रोरल एक पाउंस पानी पैतृक अपस्मार को कम लाभ हुश्रा करता है।
में मिलाकर पिलाना या । ग्रेन माफिया (अहि. अन्य प्रकार की वात व्याधियों की अपेक्षा
फेन सरब) और -ग्रेन ऐट्रोपीन ( पन्तूरीन ) मस्तिष्कविकार जन्य अपस्मार, चाहे वह प्रौप. : दंशिक हो या न हो, अधिकतर चिकित्स्य होता
का स्वगन्तरीय अन्तः क्षेप करना, श्रादि में मूर्धा :. है। दन्तोद्रेजन्य या श्रान्त्रविकारजन्य शैशव म होनेपर अवयवोंको बलपूर्वक खींचना और शिर काल से प्रारम्भ होने वाला अपस्मार और जिसे
विपरीत दिशा की ओर घुमाना, श्वासावरोध में बहुत काल हो गए हों, लगभग असाध्य होते
ईथर, बोलोफॉर्म या नाइट्रेट अॉफ इमाइल
संघाना इत्यादि उपाय रोग प्रतिषेधक रूप से रोग विनिश्चय
उपयोगी सिद्ध हुए हैं। अपस्मारके लक्षण निम्न लिखित कतिपय रोगों रोगी के शिर को तीब्र गतिसे सुरक्षित रखें। के लक्षण के बहुत कुछ समान होते हैं। प्रस्तु, कठिन परिश्रम, अधिक अध्ययन, अति मैथुन इसके निदान करने में उनका विचार कर लेना प्रादि से तथा मद्यपान एवं अधिक सर्दी गर्मी से अत्यावश्यक है:
परहेज करना चाहिए । गतिशील एवं घूमती हुई
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