________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अम्लिका
अम्लिका
purpure:1, Roxb. or Garcinia in. पक्क चिश्चाफल रस (पक्व अमली का dica, Chois.)। विस्तार हेतु देखो-वृक्षाम्ल
रस)-मधुराम्ल (खमिट्टा), रुचिकारक, (अमसूल)।
पाककर ( सूजन को पकाने वाला) और रासायनिक संगठन-तिन्तिड़ी-फल-मज्जा ।
इसका प्रलेप ब्रदोष विनाशक है। अमली मैं तिन्तिडिकाम्ल ( टार्शरिक एसिड ) ५%,
के पत्र शोफघ्न, रक्रदोष तथा वेदनानाशक हैं । निम्बुकाम्ल ( साइट्रिक एसिड), सेवाम्ल
इसके शुष्क रखकका क्षार शूल तथा मन्दाग्नि (मैलिक एसिड), तथा शुक्राम्ल (एसेटिक
नाशक है । रा०नि० २०११। एसिड ), पांशु तिन्तिड़ित ( टाटूट ऑफ पोटा- अपक्व अमली गुरु, वातहर, पित्त, कफ और रक, सियम) ८°/o शर्करा २५०/० से ४०००, निर्यास नाशक है । पक्क रेचक, रुचिकारक, अग्निप्रदीपक
और पेक्टिन प्रभृति होते हैं। बीजरवक, ( Te- और वस्तिशोधक है। शुरुक हृद्य, लघु, श्रम, sta) में कषायीन (टैनिकाम्ल ), एक स्थिर
भ्रान्ति, और पिपासाहर है। मद० व०६। तेल तथा अविलेय पदार्थ होते हैं। बीज में . श्राम खट्टी, गुरु, वातनाशक, पित्तका, कफऐल्ब्युमिनॉइड्स, वसा, कयोंज ६३२२ oor बडूक और रक्रदोषनिवारक है। पकी इमली तन्तु और भस्म जिसमें स्फुर एवं नत्रजन अग्निप्रदीप्त कर्मा, रूस, सर ( दस्तावर ) गरम
और वातश्लेष्मनाशक है । भा० पू० १ भा० । प्रयोगांश--फल (पक व अपक), मज्जा,
श्राम ( कच्चीइमली) वातनाशक, उष्ण और बीज, पत्र, पुष्प, त्वक, स्वभस्म क्षार।
अत्यन्त भारी है। पक्क लघु, संमाही है तथा
ग्रहणी और कफवातनाशक है। मद०व०६ । औषध-निर्माण-अमिलकापान, अम्लिका
अमली के पक्व फल के गुण में वृक्षाम्ल फल वटक (भा०), पत्रकाथ-मात्रा-५ से १० तो०, ।
से थोड़ा अन्तर है । (चरक सू० २७०) स्वक्षार--मात्रा-आध आना से एक पाना भर । इमली का फूल (चिचा पुष्प) कषेला, इमली के गुणधर्म तथा उपयोग
स्वाद्वम्ल और रुचिकारक, विशद, अग्निजनक, आयुर्वेदीय मतानुसार अमली अत्यन्त लघु तथा वातश्लेग्मनाशक और प्रमेहनाशक खट्टी, पित्तकारक, लघु, रजनक, वात प्रशामक है । पत्र शोथहर है । नूतन इमली बात श्लेष्म
परम वस्तिशोधक है। पक्की अमली मधु- कारक और वही वार्षिकी अर्थात् एक वर्ष की राम्ल, भेदक, विष्टम्भी और वातनाशक है। ( पुरानी ) वातपित्तनाशक है । ( निघंटु त्वक भस्म कपेली, उध्य, कफघ्न और वात- रत्नाकर) नाशक है । (धन्वन्तरीय निघण्टु)
तिन्तड़ी के वैद्यकीय व्यवहार आम तिन्तिड़ा ( कच्ची इमली) अत्यन्त खट्टी हारीत-शोथ पर तिन्तही पत्र-तिन्तिड़ी और पकी इमली मधुराम्ल (खटमिट्टी ), वातघ्न पत्र द्वारा सिद्ध किए हुए अत्युगा जल में वस्त्रखंड पित्त, दाह, रक तथा कफ प्रकोपक है। इमली भिगोकर किंवा पिसे हुए तिन्तिड़ी पत्र के उपण की कच्ची फली अत्यन्त खटी, लघु और पित्त. पिण्ड द्वारा शोथ की स्वेदन करें। यथा-- कारक है । पक्व फल स्वाहाम्ल, भेदक तथा
"संस्वेदन क्रिया कार्यासा कार्या च पुनः पुनः। विष्टम्भ और वातनाशक है । अम्ल, कटु, * अथवा तिन्सिड़ीच्छदैः" । (चि० २६ अ०) कषाय, उपण तथा कफ व अर्श का नाश करने
चक्रदत्त-भरोचक में तेतुल-(१)पकी वाली है और वात, उदररोग, तृष्णा, हृद्रोग, ।
इमली के शर्बत में गुड़ मिलाकर, मधु एवं दालयक्ष्मा, अतिसार तथा व्रण की नाशक है । चीनी, इलायची तथा मरिच चूर्ण द्वारा सुगन्धित रा०नि० च०६।
__ कर मुख में इसका कवल धारण करने से अभक.
For Private and Personal Use Only