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अम्लायनी
अम्लिका
अम्लायनी anlayani-सं० स्त्री० मल्लिका ! rindi)-जर० | पुलि, पुलियम-पज़म-ता।
भेद । नेवारी हिं०। नेवाली-मह। वै. चिण्ट-पण्डु, चिण्ट-चेट्ट-ते। पुलियम-पज़म निध।
(स० फा० ई०), पुलि, पलम ( ई० मे० श्रम्लावल amlavala-सं० अमली, चिञ्चा, सां०)-मल० । हुणिसे, हुणिसिनयले, हुणशे
अम्लिका । (Tamarindus indica). हएणु-कना० । चिंच, चिंचोक, चिञ्चा, चिण्ट्ज, अम्लि का amika-सं० स्त्री०, हि. संज्ञा स्त्री० इम्लो-मह । श्राम्बली, आम्बलीनु, चिंचोर
(१)अाम्र, श्राम । (Mangifera Ind- -गु० सियम्बुल-सिं०। मगि-बर्मा । ica) रा० नि० व०३। (२) पलाशी श्रासामजव ( बीज )-मल०। कैाँ-उत्०, सता ( Palashi )। (३) माचिका, उड़ि | करङ्गी-मैसू० । इम्ली-40। टिएटज मोहया । रा०नि० व० २३ । (४) अम्लो- चमः । ततूलि-उड़ि। द्गार, खट्टा डकार । मे० । (५) अमला
शिम्बा वर्ग . (Phyilanthus erablica ) (9) - (.). O. Leguminose )
रघेताम्लिका । (८)चाङ्गरी । ( Rumex उद्भव-स्थान-एशिया के बहुत से भाग, Corriculata ) रा० नि० व० २३ । भारतवर्ष, बमो तथा अफरीका (मित्र), अमेरिका (8) अर्श शेग में तिन्तिड़ी अर्थ में और सर्वत्र और पूर्वीय भारतीय द्वीप। दीपन और पुरीषसंग्रहणादि योगों में अम्लिका __ संज्ञा-निर्णय- इसकी अंगरेजी वा लेटिन श्यामछद एवं वृद्धदारक के अयों में प्रयुक्त । संज्ञा टैमरिण्डस इसकी झरबी संज्ञा तमहहिंदी हुई है। सि. यो० अग्निमुख चूर्ण वृन्द । से, जिसका अर्थ हिन्दी खजूर है, ब्युस्पा है। सि. यो० अरोच. चि०।(१०) अमली, वानस्पतिक-वर्णन-इसके वृक्ष से प्रायः श्रमबली, इमली, कटारे-हिं० । अम्ली, अम्ली सभी लोग परिचित हैं। इसके वृक्ष बहुवर्षीय, का बोट, अस्वली-द० । चिञ्चा, अफ्लिका विशाल एवं सशाख होते हैं ।देखो-इमली । (.), तिम्तिडीकः, तिन्तिडीका, तिम्तिविक, नोट-वृताम्ल और तिन्तिड़ी पृथक् पृथक अम्लीका, आमिलका, आम्लीका, तिन्ति- वृक्ष हैं। वैद्यक में इनके गुण-पर्याय पृथक् लिखे स्वीका ( १० टी०), वृक्षाम्लं, तिन्तिड़िः हैं। वृक्षाम्ल का पर्याय तिन्तिड़ी लिखा है, और (दै०), तिन्तिली, तिम्सिड़िका, प्राब्दिका, तिन्तिड़ी के पर्यायों में वृक्षारल शब्द का उल्लेख चुक, चुका, चुक्र, श्रम्ला, अत्यम्ला, है। वृक्षाम्ल के वृक्ष उसर पश्चिमाञ्चल में भुक्रा, भुक्रिका, चारित्रा, गुरुपत्रा, पिच्छिला, विषास्किल (वृक्ष) नामसे प्रसिद्ध हैं। ये देखने में यमदूतिका, चरित्रा ( शब्दर०), शाक चुक्रिका, अत्यन्त शोभायमान होते हैं। पत्र दीर्घ एवं सुचुक्रिका, सुतिन्तिड़ी, चुक्रिका, अम्ली, दंतशठा, चिकण होते हैं। ये वसन्त ऋतु में फलते हैं। चिपिका-सं० । तेतुल, तेतुल गाछ (वै० श०), फल निम्बुक फलवत् होता है। वृक्षाम्ल नाम तितूरी, माम्ली, तेतै ( स० फा० इ० )-4० । इसकी सर्वथा अन्वर्थ संज्ञा है। इस हेतु इसको तम(म्)रे हिंदी, हुमर, ह.मर, सधारा (स. "शाकाम्ज", "चूड़ाम्लं", "फलाम्लं" और फा० इं.), बारा, जोश-अ.। श्रम्बलह, "अम्लबोज" कहते हैं। यह चतुरामन तथा समरहिंदी ख माये हिन्दी-फा० । टैरिण्डस पञ्चाम्ल का एक अवयव है। इसका वानस्पतिक Tamarindus, टैरियडस इण्डिका (Ta. वर्ग भी यही अर्थात् वृक्षाम्ल वर्ग ( Guttimarindus Indica. Linn. )-ले। fere) है। महिण्ड Tamarind-ई० । टैप्रिनिएर । इसके पर्याय निम्न है...
डी' हण्डी ( Tamarinier de I' वृक्षाम्ल-सं० । विपाषां)विलहि । Inde.)-फ्रा० । मरिण्डी ( Tama. भमसुल, कोकम-बम्ब० । (Garcinia
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